Pepsi पीके लागेलू sexy लहंगा में बाढ़ jeans वाली भौजी, **** केला, मेहरारू बिना रतिया कैसे कटे? जानते हैं ये सब क्या है? असल में ये सारे भोजपुरी फिल्मों के नाम हैं। जिनको सुनते ही दिमाग में यही ख्याल आता है कि ये फिल्में वही है जो सस्ते में बनती है जिनमें डबल मीनिंग गाने होते हैं, डबल मीनिंग डायलॉग्स होते हैं और इन फिल्मों को तो आप कभी भी अपने परिवार के साथ तो बिल्कुल नहीं देख सकते। पिछले पंद्रह सालों में हमारे देश में ऐसी कई फिल्में बनी हैं। जिन्होंने बिहार की इमेज को काफी नुकसान पहुंचाया है।
लोग भोजपुरी सिनेमा से कई शहरों में नफरत करते है खासकर Punjab और Maharashtra में कि यहाँ ऐसे कई सारे theatres को भी तोड़ दिया गया जहाँ ऐसी फिल्में चला करती है तो क्या हमेशा से ही Bhojpuri cinema ऐसा था क्या बात कर रहे हो आप जी नहीं हमेशा से ऐसा नहीं था लेकिन बाद में हो गया तो इसकी शुरुआत कैसे हुई चलिए आपको एक कहानी सुनाते है असल में एक वक्त वो भी था जब Lata Mangeshkar Kishore Kumar और Mohammed Rafi जैसे महान गायक Bhojpuri फिल्मों में गाना गाया करते थे तो आखिर ये सब कैसे हो गया और भोजपुरी सिनेमा में इतनी गंदगी कैसे फैल गई?
चलिए आपको एक कहानी सुनाते हैं और पीछे लेकर चलते हैं और ये बताते हैं कि पहली भोजपुरी फिल्म कैसे बनी थी? क्योंकि पहली भोजपुरी फिल्म के बनने की कहानी भी थोड़ी मजेदार है। ये साठ के दशक की बात है देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद फिल्म actor नजीर हुसैन से एक कार्यक्रम में मिले और उनसे भोजपुरी में ही पूछा कि तुम भोजपुरी फिल्म क्यों नहीं बनाते?
क्या हमारे देश में लोग पैसे के बल पर जेल के अंदर भी पिकनिक मनाते हैं?
असल में ये दोनों ही भोजपुरी बोले जाने वाले क्षेत्रों से ही याद तो अब प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया से ये बात सुनने के बाद नजीर हुसैन ने पहली भोजपुरी फिल्म बनाई जो नाइनटीन सिक्सटी टू में रिलीज हुई नाम था गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाई वो बिहार और यूपी में शूट हुई ये पहली भोजपुरी फिल्म सिल्वर जुबली बन गई यानी पच्चीस हफ्तों तक सिनेमाघरों में लगी रही इसे काफी प्राइज भी मिले इस फिल्म की सफलता के बाद nineteen sixty two से nineteen sixty सिक्स के बीच उन्नीस भोजपुरी फिल्में आई और इनमें से देखे विदेशी लागी नहीं छूटे Ram संसार ये बड़ी hit फिल्में रही इन फिल्मों में Gandhi जी के सिद्धांतों को subject बनाया गया अमीर गरीब के भेद को मिटाने वाली कहानियाँ दिखाई गयी और समाज को एक समान दिखाने वाले विषय चुने गए जिससे समाज को एक सही दिशा मिल सके शायद उस वक्त इसकी ज़रूरत भी थी
असल में ये वो दौर था जब समाज में दो अलग अलग जातियों के बीच शादियाँ होना बिलकुल भी आम नहीं था और अमीर गरीब का भेद भी बहुत ज़्यादा था जैसे film विदेशिया की कहानी में अमीर गरीब के बीच का प्यार तो दिखाया गया लेकिन बाद में ये दिखाया गया कि वो गरीब लड़की जो एक अमीर लड़के से प्यार कर बैठी थी उसे लोग मार देते है कहने का मतलब है कि कहानियों को काफी real रखा गया ये फिल्में मुनाफा तो कमा रही थी ऐसे में कई सारे Hindi film maker जैसे शक्ति सामंत भी आ गए और उन्होंने कहा हमें भी भोजपुरी film बनानी है उन्होंने उस वक्त एक film बनाई थी IL Basant Bahar इसी तरह राजकुमार संतोषी के जो father थे PL Santosh उन्होंने सैयां से एक ऐसी भोजपुरी फिल्म का निर्देशन किया लेकिन ये सभी फिल्में उतनी नहीं चली जितनी की पहली भोजपुरी फिल्म बनाने वाले नजीर हुसैन की दूसरी फिल्म हमार संसार चल गई।
इस फिल्म को उस जमाने में ये कहकर प्रमोट किया गया कि भोजपुरी भाषा की ये एक युगांतरी तस्वीर है जिसमें आपको भारत के खेत खलिहान और किसान के जीवन की सच्ची तस्वीर देखने को मिलेगी ये एक भोजपुरी family ड्रामा था वो भी सोशल theme के साथ लोग इससे connect कर गए चल गया। इस फिल्म को खूब पसंद किया गया और ये खूब चली। उस दौर में हो ये रहा था कि हर कोई भोजपुरी फिल्म बना तो रहा था लेकिन हर कोई कनेक्ट नहीं कर पा रहा था क्योंकि भोजपुरी कल्चर को लोग समझ नहीं पा रहे थे। जो भोजपुरी कल्चर से नहीं आते थे वो connect नहीं कर पा रहे थे और इस वजह से कई सारी फिल्में फ्लॉप होने लगी। nineteen sixty सिक्स आते-आते भोजपुरी फिल्मों को बनाने से लोग डरने लगे कि अगर फिल्म successful नहीं हुई तो पूरा पैसा drub जाएगा।
इसके बाद हुआ ये nineteen sixty सिक्स से nineteen seventy सिक्स तक सिर्फ दो ही भोजपुरी फिल्में बनी लेकिन फिर अस्सी का दशक आते-आते भोजपुरी फिल्मों को एक नया जीवनदान भी मिला। और भोजपुरी फिल्मों को ये नया जीवन दान मिला फिल्म दंगल से जो कि पहली भोजपुरी रंगीन फिल्म थी और इसे बनाया था। पुरानी भोजपुरी फिल्म विदेशिया के प्रोड्यूसर बच्चू भाई शाह ने उस जमाने में अमिताभ बच्चन popular हो रहे थे angry young man popular हो रहा था और उसी नकल करते हुए एक action फिल्म बनाई गयी थी यानी Dangal पहली Bhojpuri रंगीन action film थी और उन दिनों हिंदी फिल्मों में भी action खूब चल रहा था लोगों को लगने लगा कि ये action का ही जमाना है लेकिन उस वक्त भी Nazir Hussain ने एक family drama film बनाई Balam Pardesia के नाम से जबकि action फिल्में बना रहे थे लोग भोजपुरी में ये Balam Pardesia एक ऐसे नौजवान की कहानी थी जो अपने लोगों से दूर चला जाता है कमाल की बात ये रही कि Dangal की तरह Balam Pardesia भी hit हो गयी और भोजपुरी फिल्में एक बार फिर से लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गयी फिर से कई सारे निर्माता पूरी फिल्म बनाने के लिए उतावले होने लगे। नतीजा ये हुआ कि nineteen seventy seven से two thousand two के बीच डेढ़ सौ भोजपुरी फिल्में बनी इस दौरान भोजपुरी फिल्मों में कई तरह के प्रयोग हुए।
किशोर कुमार और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे बड़े नाम भोजपुरी cinema की तरफ आकर्षित होने लगे। लेकिन नब्बे का दशक आते-आते वही Family Drama और वही emotional subject देख देख कर लोग भोजपुरी से भी bore होने लगे। उन दिनों बनारस जैसे शहरों में कई नकली घुमा करते थे जो नए लड़के लड़कियों को भोजपुरी स्टार बनाने का सपना दिखाते उनसे बहुत सारे पैसे ऐंठते और गायब हो जाते कुल मिलाकर भोजपुरी सिनेमा पॉपुलर तो हो गया था लेकिन सब्जेक्ट को लेकर एक बदलाव की जरूरत भी महसूस होने लगी थी बस इसी समय एक भोजपुरी सिनेमा को अह आईडिया आया सेक्स दिखाने का और ये सब nineteen ninety five के आसपास शुरू हुआ और ये दौर चला दो हजार चार तक इसी दौरान दो और काम हुए की सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाने के लिए सिनेमाघरों का tax बढ़ा दिया और sex से भरपूर इन फिल्मों से family audience गायब होने लगी यानी एक बार फिर industry थोड़ा सा low जाने लगी क्योंकि दर्शक भी नहीं थे और cinema देखना महंगा हो गया था तभी दो हजार चार में एक फिल्म आयी जिसका वो गाना बड़ा popular हुआ रिंकिया के पापा। और इस फिल्म का नाम था ससुरा बड़ा पैसे वाला। इस फिल्म से किसी को खास उम्मीद नहीं थी लेकिन ये फिल्म silver jubilee हो गई।
और ये फिल्म बन सिर्फ तीस लाख जी हाँ और ये वो दौर था जब करण जौहर एनआरआई लोगों पर फिल्में बना रहे थे। ऐसे में गाँव के लोग सिनेमा से connect नहीं कर पा रहे थे। इस फिल्म ने छोटे शहर के लोगों को बड़े पर्दे पर दिखाया जिससे लोग connect होने लगे और तीस लाख रूपए में बनी ये फिल्म musically भी इतनी बड़ी hit रही कि पूरे नौ करोड़ कमाकर इसने दिखा दिया कि गाँव की audience अगर आपके content को पसंद कर ले तो फिर आपको करोड़ों रूपए कमाने से कोई रोक नहीं सकता। इसी फिल्म के बाद आई किशन की फिल्म अह जिसका नाम था पंडित जी बताई ना कब हुई?
मैंने कुछ गलत नहीं किया फिर भी तोड़ दिया – नागार्जुन |
ये फिल्म साठ लाख रुपए में बनी और छह करोड़ रुपए कमाकर ही सिनेमा घरों से उतरी और इंडस्ट्री को दो बड़े भोजपुरी स्टार मिल गए मनोज तिवारी और तो ये एक तरह से भोजपुरी सिनेमा का सुनहरा दौर था जब दो हजार चार में इक्कीस भोजपुरी फिल्में आई, दो हजार पाँच में पैंतालीस भोजपुरी फिल्में आई और दो हजार छह में छिहत्तर seventy सिक्स भोजपुरी फिल्में रिलीज हुई। अब एक बार फिर बॉलीवुड के नाम जैसे उदित नारायण और बालाजी telefilms भी भोजपुरी फिल्म बनाने में लग गए। यहाँ तक कि अमिताभ बच्चन के makeup man ने भी उस जमाने में एक भोजपुरी फिल्म बनाई जिसमें खुद अमिताभ बच्चन ने काम किया।
बंगाली दादा मिथुन चक्रवर्ती भी उस दौर में एक भोजपुरी फिल्म में दिखाई दिए। उस जमाने में अजय देवगन और हेमा मालिनी जैसे चेहरे भी भोजपुरी फिल्मों में दिखने लगे सबको लगने लगा कि ये एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है तो चलो इसमें खूब करते है पर क्या आप जानते है फिल्में कहाँ चल रही थी असल में ये फिल्में चल रही थी Punjab और Maharashtra जैसे प्रदेशों में जहाँ भोजपुरी बोलने वाले युवा अपने गाँव और परिवार से दूर काम की तलाश में जाते थे और अपने गाँव को miss किया करते थे फिर पर्दे पर जब वो अपने गाँव का culture देखते तो उन्हें connect feel होता जब hero अपने पिता के पैर छूता जब उनकी भाभी और माँ के मांग के लाल सिंदूर की बात होती तो उन्हें लगता कि हाँ ये cinema है जो उनकी बोल रहा है उस ज़माने में हिंदी फिल्मों को भोजपुरी cinema एक बहुत बड़ी टक्कर दे रहा था ये दो हज़ार सात और दो हज़ार आठ का दौर था अब पैसे के लालच में एक ही तरह की फिल्में हर हफ्ते release होने लगी नतीजा ये हुआ कि माँग से ज़्यादा supply हुई और variety ना होने की वजह से अब फिल्मों को घाटा होना भी शुरू हो गया इसके बाद Bhojpuri film makers ने मुनाफे को बढ़ाने के लिए घाटे को कम करने के लिए film के production cost को काफी कम करना शुरू कर दिया और घटिया स्तर का दिखाना शुरू कर दिया।
वो लोग मानते थे कि ज्यादातर तो labour class ही हमारी फिल्में देखने आता है ऐसे में quality से समझौता किया जा सकता है बस यहीं से शुरू हुआ भोजपुरी सिनेमा के पतन का दौर जो आज तक चल रहा है अब सिर्फ पैसा छापने के लिए घटिया काम शुरू हो चूका था family audience तो है नहीं और हमारे जो भोजपुरी फिल्मों के दर्शक है वो migrant labours है जो परिवार से दूर है ऐसे में उनको खूब भर-भर के अश्लीलता और meaning dialogues और double meaning गाने परोसे जाने लगे इतना ही नहीं इन फिल्मों को B और C grade जैसी जो हिंदी फिल्में थी उनकी तरह ही बनाया जाने लगा और इसी तरह family audience से शुरू हुआ ये भोजपुरी cinema एक अश्लील फिल्म industry में तब्दील हो गया भोजपुरी cinema से जुड़े लोगों ने मान लिया कि पढ़े लिखे सभ्य भोजपुरी लोग तो ये फिल्में देखते नहीं है ऐसे में हम quality cinema क्यों बनाए और उन्होंने इसी तरह के double meaning cinema को बनाना जारी रखा जो आज भी चल रहा है दिल हिचौलिया क्या? भोजपुरी गाने पहले भी ठीक-ठाक हुआ करते थे लेकिन फिर जो male audience थी उसे आकर्षित करने के लिए double meaning गाने डाले जाने लगे और रही सही कसर ऐसे गानों ने पूरी कर दी अश्लीलता भर-भर के परोसी जाने लगी। फिल्मों के साथ-साथ फिर ये जो गाने थे, dance sequence थे ये और भद्दे होते चले गए।
मीडिया ने रिया के साथ अच्छा नहीं किया – आमिर खान
भोजपुरी फिल्मों के ज्यादातर heroes जैसे मनोज तिवारी वगैरह ये पहले singer थे, जो बाद में hero बन गए इसलिए इन्होंने अपनी एक अलग audience create कर ली। आज आलम ये है साठ से सत्तर लाख रुपए में एक भोजपुरी फिल्म बन जाती है। जिसमें मानकर चलिए चालीस से पचास लाख रुपए तो सिर्फ हीरो लेता है। बाकी में सारे लोग काम करते हैं अब ऐसे में प्रोडक्शन क्वालिटी कहां से आएगी यानी आज वो दौर है जब भोजपुरी सिनेमा में सब हीरो की सुनते हैं क्योंकि वो जानते हैं ये हीरो इस फिल्म में है इसलिए इसकी ऑडियंस इसे देखने आएगी जो ये कहेगा वैसा ही लिखो यानी writers तक अच्छा content नहीं लिखते वो बस हीरो की तारीफ करते हैं। उसको करते हैं और उसे एक तरह से एक-एक glorified image में पेश करते रहते हैं और यही वजह है कि content में variety नहीं है। एक बड़ा-सा हीरो लिया जाता है जिसकी कुछ फैन ऑडियंस है उसके अराउंड एक लव स्टोरी होती है। फिल्म में कई भद्दे अश्लील गंदे गाने डाले जाते हैं।
और ये मान लिया जाता है कि हाँ हमने जितना लगाया है उससे डबल हमारे पास आ जाएगा। यही वजह है कि साठ-सत्तर लाख रुपए से ज्यादा कभी बजट होता नहीं भोजपुरी फिल्मों का कहने का मतलब ये नहीं है कि साठ-सत्तर लाख रुपए में फिल्म अच्छी नहीं बनाई साठ-सत्तर लाख रुपए में भी फिल्म अच्छी बन सकती है। बशर्ते उसका content अच्छा हो लेकिन वहाँ नियत साफ नहीं होती। भोजपुरी फिल्म शुरू करने से पहले ही कुछ चीजें तय होती है कि इसमें अश्लील संवाद होंगे, अश्लील गाने होंगे, अश्लील dance होगा और इसको उसी तरह की audience के बीच बेचा जाएगा यानी भोजपुरी industry खुद ही ये मानकर बैठी है कि हमें तो family audience देखने वाली नहीं है। ऐसे में हम सिर्फ अश्लीलता ही परोसेंगे।
आज आलम ये है कि भोजपुरी अगर आप फिल्म का title भी सुन ले तो शायद title भी ऐसा होता है जिसे आप अपने परिवार के साथ सुन नहीं सकते जैसा कि मैंने इस video के शुरू में आपसे कहा था share किया था और आजकल लोग कई तरह के meme बनाते हैं मज़ाक बनाते हैं Bhojpuri film industry का और सबसे ज़्यादा दुःख की बात ये है कि दोस्तों Bihar एक बहुत विकसित राज्य है बहुत अच्छे लोग वहाँ पर रहते हैं लेकिन Bihar की image इस Bhojpuri cinema की वजह से काफी खराब हुई है लोगों को लगता है कि Bihar में सब ऐसे ही लोग रहते हैं क्या तो इस तरीके की बातें काफी होती है इंटरनेट पर, सोशल मीडिया पर लेकिन मुझे लगता है कि अभी भी समय बदल सकता है अगर पिछले पुराने दौर की तरह कुछ अच्छा content भोजपुरी सिनेमा में आए आप सोचिए हमारे देश के पहले राष्ट्रपति ने ये चाहा था कि भोजपुरी सिनेमा शुरू हो, भोजपुरी सिनेमा शुरू तो हुआ लेकिन शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि भोजपुरी सिनेमा का अंजाम ऐसा होगा।
आज उदित नारायण है, बालाजी टेलीफिल्स है और ऐसे कई सारे लोग जो है वो इस तरह की फिल्मों से पैसा कमाते रहे हैं लेकिन अब स्थितियाँ बहुत खराब हो चुकी हैं मैं भोजपुरी film industry के इस video को बनाकर यही संदेश देना चाहता हूँ और यही अपील करना चाहता हूँ कि एक भाषा एक संस्कृति हमारे ही देश में बदनाम हो गयी है हम उसे बचा सकते हैं सिर्फ थोड़ी सी कोशिश करनी है कुछ अच्छा content लाना है और हो सकता है कि अच्छा content लाने के बाद फिर से भोजपुरी cinema का सुनहरा दौर लौटकर आए और आखिर ये हमारे उस की बात है Bihar के उस culture की बात है जिसके बारे में लोग बड़ी शान से बात करते है वही Bihar है जहाँ कभी Takshashila और Nalanda का इतिहास रहा है जहाँ Gautam Buddha ने जन्म लिया तो ये तमाम बातें है जिसके बारे में ये कहा जाता है कि अगर कोशिश की जाए तो आज भी Bhojpuri industry की तस्वीर बदल सकती है ज़रूरत है तो सिर्फ साफ नियत की.