क्यों फ्लॉप हुई बड़े मियां छोटे मियां और मैदान

क्यों फ्लॉप हुई बड़े मियां छोटे मियां और मैदान

पिछला हफ्ता बॉलीवुड के लिए इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ फेस्टिवल रिलीज पे ना तो फिल्म चली और ना ही बॉक्स ऑफिस कम से कम रेस थ्री जैसी मूवीज कंटेंट ना सही लेकिन बॉक्स ऑफिस को तो जिंदा रखती है लोग थिएटर जाते जरूर है भले ही बाद में गालियां देने लग जाए एक ही हफ्ते थिएटर में तीन बड़े स्टार्स एक साथ आए थे और होश उड़ाने वाली बात ये कि तीनों साथ मिलकर भी तीन दिनों में सेंचुरी नहीं मार पाए।

बड़े मियां छोटे मियां फिल्म एक high बजट प्रोजेक्ट है पूरे साढ़े तीन सौ करोड़ खर्च किए गए थे इसको release करने में लेकिन shockingly eight फेस्टिवल पे रिलीज होने के बाद भी फिल्म तीन दिनों में बजट का सिर्फ वन टेंथ कलेक्शन कर पाई है. चालीस करोड़ नेट कलेक्शन ग्यारह सौ करोड़ की उम्मीद के साथ रिलीज होने वाली फिल्म के साथ ऐसा क्या हुआ कि लोग उसको शायद सौ करोड़ तक भी नहीं पहुंचा पाएंगे. सारे जवाब दूंगी बस थोड़ा रुक जाओ.

मैदान में कोई नॉर्मल फिल्म नहीं है सौ करोड़ बजट बताया गया है फिल्म का जितने में एनिमल और केजीएफ चैप्टर टू बनके तैयार हो गई थी. एक तो पाँच साल लेट होने के बाद फिल्म को थिएटर में रिलीज किया तो मतलब लोगों को दौड़कर जाना चाहिए था थिएटर स्पेशल शोज भी रखे थे रिलीज से एक दिन पहले हकीकत में थिएटर एकदम खाली पड़े थे वो भी चारों तरफ से पॉजिटिव रिव्यूज मिलने के बाद ऐसा हाल हुआ है.

बड़े मिया छोटे मिया बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 5 दिन : 46.75 करोड़ | Bade Miyan Chote Miyan Box Office Collection 5 days: 46.75 crores

फिल्म में चार दिनों वाले वीकेंड में सिर्फ बॉक्स ऑफिस में बाईस करोड़ का बिजनेस किया है नेट फिगर्स में जिसके बाद बजट तक पहुँचना almost असंभव है और आज तो खुनी मंडे है सर दोनों फिल्मों का कलेक्शन जोड़कर भी डबल डिजिट दस करोड़ तक पहुँच पाएगा इस बात पे भी मुझे काफी शक है यहाँ पे ये बोल के पीछा नहीं छुड़ा सकते कि पब्लिक जाना ही नहीं चाहती थिएटर क्योंकि हॉलीवुड के गॉड जिला का न्यू पार्ट उसने सिर्फ इंडिया के अंदर अकेले सेंचुरी मार दी सौ करोड़ पार है वो मलयालम सिनेमा जो बॉलीवुड के comparison में बहुत कम मतलब चींटी हाथी जितना फर्क है इन दोनों को मिलने वाली स्क्रीन्स में उसके बाद भी मलयालम सिनेमा की सिर्फ चार मूवीज परमाणु, ब्रह्मयुगम, गोट लाइफ और मंजुमल बॉयज इन्होंने साथ मिलकर almost छह सौ करोड़ का बिजनेस किया और हैरान करने वाली बात जानते हो चारों फिल्मों का बजट साथ मिलाकर सिर्फ एक सौ तीस करोड़, परमालु तो बस तीन करोड़ में बन गई और पैसा कमाया एक सौ तीस करोड़।

हाँ तो ऐसा क्या हुआ कि लोग सिर्फ बॉलीवुड से दूर भाग गए हैं। बड़े मियां, छोटे मियां और मैदान साथ मिलकर भी सौ करोड़ क्यों total सात reasons बताती हूँ आपको जिसके बाद ए to जेड of बॉलीवुड के साथ क्या गलत हो रहा है और कहाँ हो रहा है सब समझ जाओगे तुम पहला factor है बजट जिसको बढ़ा चढ़ा के बताने से फिल्म मेकर project का high बनाना चाहते है लेकिन उल्टा लोग इसको रिपोर्ट कार्ड की तरह देखते है आजकल टाइम ऐसा है कि फिल्म अच्छी है या बुरी उससे ज्यादा लोगों को इस बात से फर्क पड़ता है कि बजट क्रॉस हुआ या फिर नहीं बजट उनके लिए हिट फ्लॉप का फैसला करता है इसीलिए मैदान जैसी फिल्म सिर्फ तब तक अच्छी लगती है जब तक ये पता नहीं चलता कि वो सौ करोड़ में बनाई गई है और साढ़े तीन सौ करोड़ में बड़े मियां, छोटे मियाँ, जब चालीस करोड़ वीकेंड कमाएगी तो लोग ये सुनते ही थिएटर जाने का प्लान कैंसिल कर देंगे.

साढ़े तीन सौ और चालीस मतलब कंटेंट ही खराब होगा ये बात ऑटोमेटिकली लोगों का जजमेंट बन जाती है. दूसरा फैक्टर है फिल्म मेकर्स की प्रोमोशनल स्ट्रेटजी जो दिखता है वो बिकता है इसीलिए ज्यादा से ज्यादा अपने एक्टर्स को सोशल मीडिया और ऑफलाइन एक्टिव कर देते हैं. जबकि आज जमाना इसके ठीक उल्टा है जितना छुपोगे उतना लोग तड़पेंगे तुम्हें देखने के लिए. कॉन्टेंट ऐसा होना चाहिए कि पब्लिक खुद से आपकी फिल्म के बारे में बात करें ना कि एक्टर को हर जगह जाकर उसके बारे में बात करनी पड़े। सबसे best example है रणबीर कपूर की फिल्म animal.

बड़े मिया छोटे मिया vs मैदान 1 दिन एडवांस बॉक्स ऑफिस कलेक्शन | Bade Miyan Chote Miyan vs Maidan 1st Day Advance Box Office Collection

किसी को याद है रणवीर किसी न्यूज़ शो पे interview देने गए या फिर कॉलेज में जा के trailer launch किया इसका लेकिन फिर भी जब animal के advance booking खुली तो लोग लाइट की स्पीड से टूट पड़े tickets book करने के लिए। इसको बोलते हैं हाइप बनाना वो भी बिना किसी promotion. तीसरा factor है फिल्म मेकर्स का सबसे ताकतवर हथियार जिसका इस्तेमाल सही ढंग से किया जाए तो पिक्चर पहले दिन houseful हो जाए, trailer की बात कर रही हूँ मैं। बॉलीवुड फिल्म्स और उनके ट्रेलर का ये जोड़ी अकेले अपने दम सबसे बड़ा रीजन है जिस वजह से आज बड़े मियां, छोटे मियां और मैदान दोनों के थिएटर्स खाली पड़े हैं.

तीन मिनट का ट्रेलर डालते हैं जिसमें ए, बी, सीडी, ई, एफ, जी एच, एक पूरे सीक्वेंस में फुल कहानी रिवील हो जाती है. थिएटर जा के करेंगे क्या जब सब कुछ पहले से ही पता है. बड़े मियां, छोटे मियां का हाइट बहुत सॉलिड था, पब्लिक के बीच में जब तक इसका ट्रेलर नहीं आया था. लेकिन ट्रेलर आते ही लोग समझ गए **** पुराना है. तीन सेकंड का वो एनिमल ट्रेलर से रणबीर कपूर का स्टार्टिंग वाला सीन बॉक्स ऑफिस पर नौ सौ करोड़ का रीजन बन गया.

जबकि शाहरुख खान की फिल्म डंकी इंडिया में सिर्फ दो सौ पे अटक गई क्योंकि ट्रेलर के बाद लोग राजकुमार हिरानी पे शक कर गए फिर वो दूर नहीं हो पाया। अब चौथा factor एक्टर्स का लालच सोचो आपकी पुरानी फिल्म थिएटर से उतरी नहीं उतने में आप एक नया option लेकर आ गए पब्लिक के लिए। इसीलिए जिन लोगों ने already शैतान देख ली थिएटर्स में वो क्यों अपना पैसा उड़ाएंगे फिर से वही same actor की फिल्म पे जिसकी कहानी वो already जानते हैं। और ये तो एक परसेंट भी नहीं है उस चीज का जो काम अक्षय कुमार हर साल करते हैं बारह महीनों में कम से कम छह movies back to back लेकर आना excitement कैसे आएगा?

Actors का जरूरत से ज्यादा दिखना लोगों को मजबूर कर देता है कुछ नया try करने के लिए सात दिन सात अलग आइसक्रीम या फिर same वही कुल्फी बार-बार जवाब मिल गया अरे इंस्टाग्राम deals का example ले लो एक ही इंसान की सौ वीडियोस देखना चाहोगे या फिर सौ लोगों की सौ अलग-अलग videos बोलो-बोलो पांचवा factor है promotional songs के नाम पे जो content फिल्म release से पहले लोगों को दिखाया जाता है इस मकसद से कि लोग advance booking खुलते ही टूट पड़े उल्टा वो दो मिनट का गाना public को पूरे दो घंटे की फिल्म पे शक करने को मजबूर कर देता है बड़े मियां छोटे मियां के गानों ने तो लोगों का मन ही बदल के रख साढ़े तीन सौ करोड़ की एक्शन फिल्म सोचकर जो लोग रिलीज का इंतजार कर रहे थे वो ऐसे घटिया गाने सुनकर जो किसी को समझ में नहीं आए फिल्म से तुरंत दूर हो गए जबकि पठान का बेशर्म रंग फिल्म के फर्स्ट डे कलेक्शन को आराम से दस-बीस परसेंट बिजनेस का फायदा पहुंचा गया रीजन गाने में दम था।

छठा factor है बॉस नक़ल मार के एक जैसा रिपीट सिनेमा बार-बार बनाना पहले बायोपिक की बाढ़ आई और अब एक्शन मूवीज लोग पक गए हैं। इसका सबसे बेहतरीन example है वॉर जैसी फिल्म वहां ऋतिक वर्सेज टाइगर को सोचकर ही लोग पागल हो गए और फिल्म का सब्जेक्ट बहुत नया था कोई नहीं कर पाया लेकिन अब पाँच साल बाद आप वही काम करना चाहते हो अक्षय कुमार एंड टाइगर श्रॉफ को लेकर तो लोगों के लिए कुछ नया नहीं है वो ऑलरेडी देख चुके हैं ये सब डे इंडिया जैसी स्पोर्ट्स फिल्म लोग आज भी नहीं भूल पाए और उसी सेम पैटर्न पे एक जैसी फिल्म बना के आप मैदान पे उतर गए क्यों देखेगा कोई ये फिल्म एक्शन बनाना है तो केजीएफ जैसा लेकर आओ जिसकी कोई कॉपी ना कर पाए और स्पोर्ट्स बनाना है तो कुछ नया लेकर आओ जो दुनिया से छुपा है आज तक और अब लास्ट सातवां सबसे इम्पोर्टेन्ट पॉइंट स्टार्स की वजह से फिल्म नहीं बल्कि फिल्म की वजह से स्टार्स बनते हैं लोग आजकल ट्वेल्थ विक्रांत मेस्सी इंडिया की नंबर वन फिल्म बन चुकी है

वो आईएम टीवी के हिसाब से पूरी दुनिया में आज तक बनने वाली टॉप ढाई सौ मूवीज में फिफ्टी एट रैंक है उसकी कोई बड़ा स्टार नहीं कोई फालतू का प्रमोशन नहीं कोई तीन सौ चार सौ करोड़ बजट नहीं ट्वेल्थ फेल की वजह से लोग विक्रांत मेस्सी की एक्टिंग टैलेंट को पहचान गए। जबकि फिल्म मेकर ये सोचते है कि अक्षय कुमार अजय देवगन को ले लिया तो फिल्म का कलेक्शन सेट है, कंटेंट चाहे जैसा हो बजट तो क्रॉस कर ही लेंगे। नकली मूंछ लगा के पृथ्वीराज करने वाले अक्षय कुमार को लोगों ने टोटली इग्नोर मार दिया सिर्फ उनके लेस सीरियस attitude की वजह से आजकल पब्लिक स्मार्ट है सर वो अच्छे से जानती है कौन सा एक्टर कितना serious लेता है अपनी audience को और ठीक वैसा ही collection मिलता है.

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