फिर निशाने पर एनिमल

फिर निशाने पर एनिमल

बॉलीवुड के ऐसे कई सारे काले सच हैं जिनसे मैंने अक्सर पर्दा उठाया है और मैं आपको उनके बारे में बताता भी रहता हूँ अभी हाल ही में बॉलीवुड का एक और काला सच निकलकर आया है एक actor है सिद्धार्थ जिन्होंने रंग दे बसंती में काम किया था। उनका एक स्टेटमेंट सामने आया जिसमें उन्होंने रणबीर कपूर की फिल्म एनिमल को निशाने पर रखा। उन्होंने ये कहा कि मेरी हाल ही में एक फिल्म आई है नाम है चिट्ठा और ये जो है वो बाल यौन शोषण पर आधारित है, जो कि हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिस पर खुलकर बात भी नहीं होती, बहुत से घरों में होता है, लेकिन कोई खुलकर बात नहीं करता, इसीलिए उन्होंने ये फिल्म बनाई ताकि लोग इस फिल्म को देखने के बाद इससे जुड़ी बातें साझा करें और ऐसे मामले ना हों।

एक तरह से awareness के लिए लेकिन ये कहते हैं कि चिट्ठा जिस वक्त release हो रही थी, उसी वक्त एनिमल आ गई और उसकी वजह से उन्हें थिएटर्स नहीं मिले। एनिमल की जो तमिल version है, मिरुगम उसको किसी को आपत्ति नहीं हुई, animal को देखकर आपत्ति नहीं हुई। लेकिन कुछ लोगों ने ये कहा कि हमें चिट्ठा से आपत्ति है, अब आप सोचिए कि अगर एक ऐसे subject पर फिल्म बन रही है, जिस पर जागरूकता लाने की जरूरत है, awareness लाने की जरूरत है, वहां लोगों को problem होने लगती है, लेकिन animal जैसी फिल्म जहाँ कोई जागरूकता नहीं है, कोई awareness नहीं है, बल्कि एक ऐसे behaviour को दिखाया गया है, जो कि नहीं होना चाहिए। उसको लेकर लोग उस फिल्म को हाथों-हाथ लेते हैं। और चिट्ठा जैसी फिल्म ये कह दिया जाता है कि इनको थिएटर नहीं मिलेंगे या उसको देखकर लोगों को आपत्ति होने लगती है।

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तो ये सारी बातें जिस तरह से सिद्धार्थ ने कही है मीडिया के सामने वो हमें ये बताता है कि हमारे समाज में अभी भी हम मसाला एंटरटेनर्स को पसंद करते हैं फिर हम ये कहते हैं देखो कैसी फिल्में बनाते हैं। जब आप वैसी ही फिल्में देखने जाएंगे तो वैसी ही फिल्में बनी। अगर एक ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बन रही है जिसके बारे में बात करने की जरूरत है और आपको सब्जेक्ट से प्रॉब्लम होने लगे तो कहने का मतलब ये है कि बाल शोषण जो कि एक बहुत बड़ा मुद्दा है हमारे देश का बहुत सारे घरों में बच्चों के साथ यौन शोषण होता है, होता रहा है। कई जगहों पर आवाजें नहीं उठाई जाती कभी लोकलाज के डर से कभी सामाजिक मर्यादा के डर से और बहुत सारे बच्चे एक कुंठित मानसिकता के साथ बड़े होते हैं और अक्सर जब वो बड़े होते हैं तो उनके रिश्ते उतने नॉर्मल नहीं रह पाते जितने कि नॉर्मल रहने चाहिए।

ऐसे टॉपिक पर अगर एक फिल्म बनती है, जिसको देखे जाने की जरूरत है, जिसको दिखाए जाने की जरूरत है, जिसके बारे में बात करने की जरूरत है। उसे थिएटर ना मिले, तरफ लोग कहें कि अरे एक ऐसा सब्जेक्ट बना दिया और एनिमल जैसी फिल्म को अगर देखने जाएंगे तो definitely इस पर सवाल उठेंगे और सिद्धार्थ भी अब उन लोगों में शामिल हो गए हैं जिन्होंने एनिमल पर सवाल उठाया कुछ समय पहले अह जावेद अख्तर साहब ने सवाल उठाया था कि बहुत डिस्टर्बिंग फिल्म है, डिस्टर्बिंग सिनेमा है और अब ये सिद्धार्थ है, दोस्तों आप इस पूरे मामले पर अपनी क्या राय रखते हैं, क्या आपको लगता है चिट्ठा जैसी फिल्में और बनने की जरूरत है ताकि हमारे समाज में जो दबी छुपी जो अह गंदी चीजें हैं, जो खामियां बुराइयां हैं वो निकलकर सामने आएं लोग उनके बारे में खुलकर बात करें या फिर हमें animal जैसा सिनेमा देखना है जो एक दूषित मानसिकता वो दिखाता है।

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