मिर्जापुर 3 देखने वाले दर्शकों के जहन में कई सारे सवाल शुरू हो चुके हैं। सवाल कुछ ऐसे हैं कि मजबूरी में शुरू हुई गैंग से बाजी का मजा ले रहे गुड्डू पंडित मिर्जापुर की गद्दी को संभाल पाएंगे या नहीं? गुड्डू के गुब्बार को गेम प्लान से मैनेज कर रही गोलू का गोल पूरा होगा या नहीं? जौनपुर के जूनियर शुक्ला और शरद पूर्वांचल पर पकड़ की open position में अपना सिक्का भिड़ाकर पापा का सपना पूरा कर पाएंगे या नहीं? प्रेम के प्रपंच में भाई को भेंट चढ़ा चुके छोटे त्यागी का अगला टारगेट अब क्या होगा? मौत के मुहाने से लौट कालीन भैया के लिए अब मिर्ज़ापुर red कारपेट बिछाएगा या फिर कांटे और सबसे बड़ी बात ये कि मुन्ना भैया मृत्यु की शैय्या से लौटेंगे या निपटे हुए ही रहेंगे। तो जब आप दूसरा सीज़न देख चुके हों मिर्ज़ापुर का और तीसरा देखने वाले हों तो ये सारे सवाल हैं जो आपके जहन में आएंगे क्योंकि वो सारे सवाल हैं जो दूसरा सीज़न आपके जहन में छोड़कर गया था।
अब जो जवाब आया है मिर्ज़ापुर 3 के रूप में तो सवाल ये है कि इन सवालों के जो जवाब आए हैं उनसे क्या निकलकर सामने आता है? क्या दर्शक इन सवालों के जवाबों को गले उतार पाएंगे? देखिए गुड्डू पंडित पहले बागी बने फिर गुंडे फिर गैंगस्टर और अब उनको बनना है बाहुबली पहले सीजन से ही ये साफ था कि गुड्डू पंडित को पावर नहीं चाहिए. ये आदमी तो अराजकता फैलाने इस दुनिया में आया है और अब जब उसके पास मिर्ज़ापुर की पॉवर आ गई है तो वो क्या करेगा? मिर्ज़ापुर थ्री शुरू होता है गोलू से।
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जो कालीन भैया उर्फ अखंडानंद त्रिपाठी या उनकी dead बॉडी मिले बिना सांस नहीं लेंगी। कालीन भैया सिर्फ king of मिर्ज़ापुर नहीं थे, पूर्वांचल की power को जोड़ने वाला एक बड़ा power great थे, उनके जाने से अब ये power बिखरने लगी है। गुड्डू भले ही उनकी कुर्सी पर बैठकर खुद को खलीफा घोषित कर दे, लेकिन power का ये नियम है कि वो मिलती नहीं है। power को कमाना पड़ता है। और अपने खराब fuse के लिए बदनाम रहे, गुड्डू का सबसे बड़ा है जौनपुर का नया झंडा वरदार शरद शुक्ला, सुपुत्र of रतिशंकर शुक्ला जिसे गुड्डू ने एक सांस में का-खा पढ़ते हुए मार दिया था मगर शरद पढ़ा-लिखा चतुर चालाक, चौकस लड़का है और सब्र का भरपूर भंडार रखे हुए इस लड़के का दिमाग एबीसी भी नहीं बल्कि alpha beta गामा तक पढ़ लेता है।
गुड्डू ने तो थोक के भाव दुश्मन बनाए ही है। कोल्हू के हिस्से भी एक दिलजला आया है। भरत त्यागी बनकर जी रहा उसका जुड़वा छोटा भाई, शत्रुघ्न गोलू के चक्कर में पड़कर भाई खो चूका शत्रुघ्न अब आशिकी में केकड़ा बनने जा रहा है ये आपको तब समझ में आएगा जब आप इस शो को देखेंगे पंडित परिवार के सर अब एक नया दुख आया है। एडवोकेट रमाकांत पंडित ने सीजन टू में गुड्डू को बचाने के लिए एसएसपी मौर्या की हत्या कर दी थी अब वकील साहब खुद जेल में है और कैदियों को देखकर उनकी जो नैतिकता है वो अब डगमगाने लगी है।
उनका घर उनकी बेटी का प्रेमी रोबिन चला रहा है इधर कालीन भैया की पत्नी बीना त्रिपाठी परिवार के आखरी चिराग को मिर्जापुर की आँधियों से बचाने में लगी है गुड्डू को उनका फुल सपोर्ट है और उधर लखनऊ में स्वर्गीय मुन्ना त्रिपाठी की पत्नी मुख्यमंत्री माधुरी यादव उनके सामने भी सर्वाइवल का सवाल बहुत तगड़ा आकर खड़ा हो गया है माधुरी को अपने पिता की परम्पराओं पर चल रहे उनके पॉलिटिकल साथियों और दुश्मनों से निपटना है वो प्रदेश को मुक्त प्रदेश भी बनाना चाहती हैं और बाहुबलियों में कानून का भय भी भरना चाहती हैं। अब सवाल ये है कि जो इतने सारे ट्रैक्स चल रहे हैं इन सारे ट्रैक्स में क्या इतनी ताकत है कि वो दर्शकों को बांधकर रख पाएं? ये एक बड़ा सवाल है क्योंकि मिर्ज़ापुर टू जब ख़त्म हुआ, कई सारे सवाल छोड़ गया, मिर्ज़ापुर थ्री का इंतज़ार इसलिए था कि ये सारे सवालों के जवाब मिलेंगे या नहीं?
इतना मज़ा आएगा? या नहीं आएगा? आप जानते हो मिर्जापुर का शुरू से एक ट्रेडमार्क रहा है, खून खच्चर से दर्शकों को एकदम shock कर देना। मगर पहले सीजन से तीसरे सीजन तक आते-आते इसका इस्तेमाल अब कहना चाहिए कि ज्यादा समझदारी से हो रहा है। मिर्ज़ापुर 3 की खासियत इसकी intelligence है। पिछले दो सीजन को अगर आप देखें, उसके मुकाबले अब किरदार जो हैं, वो ज्यादा दिमाग लगा रहे हैं। यहाँ तक कि गुड्डू जैसा किरदार भी अब दिमाग लगा रहा है।
violence तो गुड्डू की यूएसपी है ही ये बात शो के writers ने establish भी कर दी है और इसको बहुत अच्छे से इस्तेमाल किया है लेकिन गुड्डू को हमेशा भभकते हुए की इच्छा रखने वालों को ये बात थोड़ी कम पसंद आएगी हालाँकि शो के अंत में जेल के अंदर डिजाइन किया गया एक पाइट सिक्वेंस जो है वो इसकी पूरी भरपाई कर देता है। मिर्ज़ापुर थ्री में कॉमिक रिलीफ पहले दो सीजन के मुकाबले काफी कम है। जहाँ भी है वो कहानी में थोड़ी ऐसा लगता है कि उसे जबरदस्ती जगह दी गई है और वो जो एक आपका मूड चल रहा होता है शो को देखने का उसमें खलल पैदा कर देती है जैसे एक undercover कॉप किरदार और प्रदेश के अह जबरदस्त जबरन गलत शब्द पढ़ने की जो उनकी नौटंकी है वो डिस्टर्ब करती है।
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मिर्ज़ापुर में शुरू से ही कई सारी कहानियां आपस में क्रॉस होती रही है, आप जानते हैं इस बार इसे बहुत बेहतर तरीके से डील किया गया है, मगर शत्रुघ्न त्यागी का जो सब प्लॉट है वो शायद लोगों को लगेगा कि और थोड़ा दिखाना, दिखाया जाना चाहिए था, सीजन two में भी त्यागियों का मामला कुछ अधूरा सा रह गया था, इस बार भी वो मेन मुद्दे में ज्यादा contribute नहीं कर पाए हैं, दूसरे सीजन में जो एक नया आया था। जो जनता का favourite बन गया था इस बार उसे और ज्यादा अच्छे तरह से दिखाए जाने की उम्मीद है मगर शो ने यहाँ निराश किया writing में किरदारों को मार देना अक्सर ये दिखाता है कि राइटर उनसे बेहतर काम नहीं करवा पा रहे थे और उन्हें एक बेवजह का एक जटिल अह ट्रैक बनाकर और फिर उन्हें हटा दिया गया।
हो ये भी सकता था कि जिन किरदारों को निपटाया गया है उनसे कुछ और बेहतर अह कहानी निकलवाई जाती है, कुछ और बेहतर करवाया जाता शो का जो असली मजा है वो शरद शुक्ला और माधुरी का है। इन दो किरदारों की राइटिंग बहुत अच्छी है। दोनों यंग हैं, अच्छे पढ़े-लिखे हैं, एक नई यूनिवर्स में जीने का ख्वाब देखते हैं, विरासत में मिले कीचड़ में उतरना है, फिर उन्हें बैलेंस बनाना है और कैसे वो इसमें बैलेंस बनाते हैं, नहीं बनाते हैं। ये काफी देखने में interesting लगता है। मिर्जापुर 3 में सबसे ज्यादा मजा आता है, महिला किरदारों को देखते हुए।
बीना, माधुरी, गोलू और जरीना अपनी-अपनी रॉ में अपना काम अच्छे से करके गए हैं, डायरेक्टर्स गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर के साथ-साथ writers की team भी अह बहुत हद तक मिर्जापुर 3 के लिए जिम्मेदार मानी जानी चाहिए कि अह जो महिला किरदार है उन्हें बहुत असरदार बनाया गया है। तीसरे सीजन में मिर्जापुर किरदारों के ट्रीटमेंट conflicts और कैमरे की नजर से details दिखाने में भी काफी समझदारी दिखाई गई है, dialogues हमेशा की तरह तैशबाजी से भरे हैं, emotion वाले scenes में आपको emotions महसूस होंगे, शो ने अपना एक जो feature है उसको बनाकर रखा सी भी हालत में आप किरदारों से जैसे बर्ताव की आशा करते हैं वो वैसा बिल्कुल नहीं करते यानी आपको शॉक वैल्यू उसमें काफी मिलने वाली है।
जो कि आपको और भी ज्यादा बांध कर रखती है। मिर्ज़ापुर से भले ही कितनी ही शिकायतें हो मगर actors के काम के मामले में इस शो का लेवल काफी ऊपर है। अली फजल पंकज त्रिपाठी, ऋषिका दुगल और श्वेता त्रिपाठी पहले सीजन से ही जिस तरह से लोगों को बांधकर रख रहे थे। और इस बार भी बिल्कुल ऐसा है कि इन सारे किरदारों ने अ दर्शकों को बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। और अगर हम देखें कि विजय वर्मा जैसा उम जैसे ही कुछ माहौल बनाते हैं तो फिर उनका character उस तरह से सामने नहीं आता और इस वजह से अह ऐसा लग रहा है कि कुछ और बेहतर हो सकता था लेकिन हाँ तब भी ठीक है कुल मिलाकर मिर्जापुर में शुरू से ही एक moral scale यानी कि नैतिकता के कांटे की तो कमी रही है जो अब तीसरे सीजन में और भी ज्यादा आपको महसूस होगी।
छह साल और season तक survive कर चुके इस show में अभी तक आप किसी भी किरदार से ये उम्मीद नहीं कर सकते कि वो बड़ा morally behave करेगा एक तरह से पूरा dark ah ये संसार है dark दुनिया है लेकिन आप जानते ही है कि मनोरंजन उसी का नाम है जो आपकी monotonous life को थोड़ा सा एक break दे कुछ नया दिखाए और इससे ज्यादा मैं कुछ बताना नहीं चाहूँगा मैं चाहूँगा कि आप अब इस show को खुद देखे अपना review आपने इस शो को कितना पसंद किया, नहीं किया?
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