अजय देवगन की फिल्म को धो डाला : औरों में कहाँ दम था | Ajay Devgan’s film was a washout: Others had no strength

अजय देवगन की फिल्म को धो डाला : औरों में कहाँ दम था | Ajay Devgan’s film was a washout: Others had no strength

बॉलीवुड को जिस बात का डर था इस शुक्रवार वही हुआ उलझ और औरों में कहाँ दम था। यानी अजय देवगन और नीरज पांडे की फिल्म जिसमें अजय देवगन तब्बू के साथ दिखाई दिए एक बार फिर वो दो करोड़ रूपए की opening के साथ बॉक्स ऑफिस पर धराशाही हो गई और उलझ को भी पब्लिक ने ऐसा नकारा कि कई सारे शोज कैंसिल करने पड़े। दोस्तों करोड़ों रुपए की लागत के बाद ये फिल्में थिएटर्स तक पहुँचती हैं।

और दुनिया जानती है कि बॉलीवुड फिल्में बनाना आसान है पर रिलीज़ करना उससे कहीं मुश्किल काम है। उसके बावजूद अगर लोग इन फिल्मों को नकार रहे हैं तो आखिर इसकी वजह क्या है। वजह हम आपको अपने प्लेटफार्म पर बहुत लंबे समय से बताते रहे हैं। कहानियां लोगों से कनेक्ट नहीं करती।

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किरदार लोगों को समझ नहीं आते और कंटेंट के नाम पर कूड़ा परोसा जाता है, ये अब बॉलीवुड की पहचान बन चुकी है। आप जानते ही हैं कि हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी और हिंदी भाषा में फिल्में बनाने का दावा करता है बॉलीवुड। लेकिन हिंदी बोलने वालों से कोई कनेक्ट नहीं बना पाता।

यही वजह है कि ये बड़ी-बड़ी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फेल होती हैं, गिर जाती हैं लेकिन बॉलीवुड अभी इन सारी बातों को समझने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके लिए बहुत सारे factors जिम्मेदार हैं। लोग nepotism का जिक्र करते हैं, लोग content ना होने का जिक्र करते हैं, लोग ये भी जिक्र करते हैं कि नए कहानीकारों को मौका नहीं दिया जाता। नए लोगों की कहानियां सुनी जाती है, ना सुनाई जाती है यानी कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जो बॉलीवुड पर कब्ज़ा करके बैठे हैं, जिनका काम अब लोगों को समझ नहीं आता और एक-एक करके ये जो बॉलीवुड का किला है ये धाराशाही हो रहा है।

दोस्तों ये कोई पहला शुक्रवार नहीं है ऐसे कई शुक्रवार आए और गए, बल्कि आप कहें तो इस साल जो कि आधे से ज्यादा बीत चुका है अब पूरी तरह से ये कह रहा है, ये जाता हुआ साल सात महीने बीतने के बाद हम यही कहेंगे कि बॉलीवुड के इस साल कुछ भी नहीं आया है। जानते हैं, इसकी वजह क्या है? इसकी वजह कि कहानी क्या कहनी चाहिए, कौन-सी कहनी चाहिए, किरदार कैसे होने चाहिए।

ये बॉलीवुड भूल चुका है, क्योंकि बॉलीवुड अब किसी और ही चीज के पीछे भाग रहा है। ऐसा नहीं है, कि इस देश में सिनेमा नहीं बन रहा और इस देश में लोग सिनेमा देखने नहीं जा रहे हैं, इस देश में सिनेमा बन भी रहा है, लोग देखने भी जा रहे हैं, बस वो सिनेमा बॉलीवुड में नहीं बन रहा है।

मैं आप लोगों से जानना चाहता हूं कि पिछले सात महीनों क्या आपको कोई ऐसी फिल्म ध्यान में आती है जो आपको लगता है कि बॉलीवुड ने बनाई है और वाकई अच्छी थी और किसी यूँ ही किसी वजह से नहीं चली क्योंकि बॉलीवुड के दर्शक इस समय काफी निराश है वो साउथ का कॉन्टेंट देख रहे हैं, वो बाहर का सिनेमा देख रहे हैं, वो ओटीटी पर जुड़ गए हैं, वो कहीं ना कहीं ये मान बैठे हैं कि अब इनके बस की बात नहीं है कि वो हमें एंटरटेन करें, दोस्तों करोड़ों रुपया जब डूबता है तो दुःख होता है, उसको भी जिसने फिल्म में लगाया और एक तरह से हम भारतवासी होने के नाते इस बात पर दुःख जताते हैं कि हमारे देश का पैसा ऐसे बर्बाद content को बनाने के लिए लगाया गया जो किसी और बेहतर काम में लग सकता था।

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लेकिन ये बात बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को समझ में नहीं आती। वो घिसे पिटे ढर्रे पर आज भी बैठे हैं उन्हें आज भी इंतजार है कि कोई जादू होगा, कोई चमत्कार होगा लेकिन ना वो चमत्कार होता है, ना जादू होता है, ना लोग उनका सिनेमा देखने आते हैं। और एक सबसे बड़ी तस्वीर जो इस शुक्रवार निकलकर आई वो ये कि अगर आप so called hit जोड़ियों को भी repeat करेंगे तो लोगों को interest नहीं है।

अब आप सोचिए नीरज पांडे जैसा फिल्मकार जिसने स्पेशल twenty सिक्स अ वेडनेसडे और ऐसी फिल्में बनाई है जिन्होंने लोगों के दिलों को छुआ है वो एक ऐसी subject को लेकर आ जाते हैं जो लोग इस फिल्म को देखने गए उन्होंने कहा सर दर्द फिल्म है यानी एक फिल्मकार के तौर पर भी हार है और सो कॉल्ड स्टार के तौर पर भी हार है कि लोग आपको देखने नहीं पहुंच रहे हैं।

मैं आप लोगों से जानना चाहता हूँ इस तरह के सिनेमा को जब आप देखते आसपास ऐसा सिनेमा घटता है। और एक comparison मन में आता है कि भाई हिंदी वाले तो ये बना रहे हैं, तमिल तेलगु क्या बना रहे हैं? देखो बाहर का सिनेमा क्या बन रहा है? देखो ओटीटी पर कैसा कंटेंट आ रहा है? आपको लगता है कहीं पर भी बॉलीवुड खड़े होने लायक रह गया है।

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