12th फेल एक कमाल की फिल्म जिसने कई awards जीते, जनता का दिल जीता, critics को जीता, समाज को नया संदेश दिया और हर तरफ उसकी सिर्फ तारीफ ही तारीफ हो रही है, लेकिन इसके बारे में एक स्टेटमेंट आया है, जो कलई खोलता है, हमारे देश के फिल्म critics की असल में आज इस फिल्म को release हुए करीब सौ दिन पूरे हो गए हैं, इसलिए इसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। चोपड़ा जी जिन्होंने इस फिल्म को बनाया है, उनकी जो पत्नी है अनुपमा चोपड़ा जी वो एक जानी-मानी फिल्म critic है। तो विधुविनोद चोपड़ा ने अपने एक interview में की है जिस वक्त वो ये film बना रहे थे तो उनकी जो पत्नी है Anupama Chopra जो देश की जानी मानी critic मानी जाती है उन्होंने ये कहा था कि इस film को देखने कोई नहीं आएगा अब ये जो statement है Anupama Chopra जी का जो कई दशकों से Bollywood फिल्मों का review कर रही है interview कर रही है जो इस बात का दावा करती है कि वो बहुत बड़ी और बहुत महान film critic है
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अब आप सोचिए कि इतनी बड़ी और महान critic अगर हमारे देश के दर्शकों की नब्ज नहीं पकड़ पाती हैं, तो क्या होगा? उनका ये स्टेटमेंट अपने आप में ये बताने के लिए काफी है कि उन्हें देश के दर्शकों की नब्ज नहीं पता है, वही गलती जो कभी अनुराग कश्यप ने की वही गलती जो कभी करण जौहर ने की, वही गलती जो अनुपमा चोपड़ा ने की, यानी आप जब अपने पेशे के सबसे चरम पर होते हैं, आपके हिसाब से, तब आप अक्सर ऐसी गलतियां करते हैं, कि आपके मन में जो ख्याल विचार आ रहे हैं, वही उस का रवैया है, ऐसा नहीं होता।
आप कितने भी बड़े critic हों, आप तब तक एक महान critic नहीं हो सकते, जब तक आपको देश के दर्शकों की समझ नहीं है, अगर आप एक फिल्म maker हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि लोग क्या पसंद करेंगे और क्या पसंद नहीं करेंगे। जैसे हाल ही में हनुमान फिल्म आई है। उन्होंने बहुत अच्छी नब्ज पहचानी, राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, साथ में वो हनुमान जैसी फिल्म लेकर आ गए।
या कानतारा बनाने वाले ऋषभ शेट्टी, उन्होंने लोगों की नब्ज़ पहचानी। तो अगर आप खुद को फिल्म critic कहते हैं, अगर आप खुद को filmmaker कहते हैं तो ये बहुत जरूरी हो जाता है कि आपको लोगों की दर्शकों की उस बाजार की जहाँ आपको अपना **** बेचना है, content खपाना है उन उसकी नब्ज़ आपको पता हो अगर उसकी नब्ज़ आपको पता नहीं होगी तो आपका मखौल उड़ जाएगा। जैसे इस समय खुद विधुविनो चोपड़ा ने जब ये बताया एक interview में कि उनकी पत्नी तक को लग रहा था कि इस फिल्म को देखने को ही नहीं जाएगा और ये फिल्म चल गई।
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ये ये बताता है कि उनकी पत्नी एक बहुत महान फिल्म critic हैं उन्हें देश के दर्शकों का कितना अंदाजा है? उन्हें देश के दर्शकों की नब्ज कितनी पता है? यही नुकसान होता है जब आप सिर्फ फिल्म fraternity के बीच उठने-बैठने लगते हैं और बाकी हिंदुस्तान से कट जाते हैं।
आपको पता ही नहीं चलता कि देश की गलियों में, देश के मोहल्लों में, छोटे शहरों में चाय की टपनियों में, पान की दुकानों पे जो बेरोजगार युवक टहला करते हैं, घूमा करते हैं, उन्हें किस तरह का content चाहिए? मैं अपने जितने भी हमारे बॉलीवुड industry के फिल्म critics हैं उनको ये request करूंगा कि आप मुंबई शहर से बाहर निकलिए, छोटे शहरों में जाइए, अलग-अलग तबके के लोगों से बात कीजिए, उनके दुःख दर्द समझिए, थोड़ा अखबार पढ़िए, छोटे शहरों की घटनाओं और खबरों पर प्रकाश डालिए, ये सब आपको मदद करेगा, एक बेहतर फिल्म को समझने के लिए क्योंकि जब तक आप बाजार नहीं जानते, जब तक आप दर्शक नहीं जानते, आप फिल्म नहीं बना सकते और आप तो फिल्म के critic हैं यानि आप निकाल कर बताते हैं तो कमियां तो आप तब बता पाएंगे जब आपको बाजार पता हो, जिसे बाजार ही नहीं पता वो किसी content की कमियां क्या बताएगा, वो किसी content को नई दिशा क्या देगा?