दारा सिंह क्यों कभी किसी से नहीं हारे? दारा सिंह की अनकही कहानी | Why did Dara Singh never lose to anyone? The untold story of Dara Singh

दारा सिंह क्यों कभी किसी से नहीं हारे? दारा सिंह की अनकही कहानी | Why did Dara Singh never lose to anyone? The untold story of Dara Singh

दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा था, उन्हें बचपन से ही कुश्ती का बहुत शौक था, एक मजबूत कद काठी के दारा सिंह ने कुश्ती की दुनिया में ना सिर्फ भारत का नाम ऊंचा किया बल्कि उनके बारे में सबसे दिलचस्प बात ये है कि पचास के दशक में एक मुकाबले में दारा सिंह ने अपने से कहीं ज्यादा वजनी ऑस्ट्रेलिया के किंगकॉन्ग को पहले तो रिंग में पटकनी दी और फिर उन्हें उठाकर रिंग के बाहर ही फेंक दिया, उस वक्त सिंह का वजन एक सौ तीस किलो का था जबकि किंग कोंग दो सौ किलो के थे।

1983 में उन्होंने अपने जीवन का अंतिम मुकाबला जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति यानि जहर सिंह के हाथों अपराजय पहलवान का ख़िताब अपने पास बरकरार रखते हुए कुश्ती से सम्मान पूर्वक सन्यास ले लिया। यानि वो कभी हारे नहीं और दुनिया भर के पहलवानों को धूल चटाते रहे। क्योंकि दारा सिंह जब भी अखाड़े में होते थे, सामने वाला पहलवान चाहे कितना भी बलवान क्यों ना हो दारा से उसका कोई मुकाबला नहीं होता था।

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1947 में दारा सिंह ने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में मलेशियाई चैंपियन त्रिलोक सिंह को हराकर कुआलमपुर में मलेशियाई कुश्ती चैंपियनशिप जीती। पांच साल तक फ्री स्टाइल रेसलिंग में दुनिया भर के पहलवानों को चित्त करने के बाद दारा सिंह भारत आकर nineteen fifty four में भारतीय कुश्ती के champion बन गए। दारा सिंह ने ही एक तरह से पूरी दुनिया में भारतीय कुश्ती को पहचान दिलाई।

दारा सिंह और सरदारा सिंह ने मिलकर पहलवानी शुरू कर दी थी और धीरे-धीरे गाँव के दंगलों से लेकर शहरों में कुश्तियों का वो आयोजन करते उन्हें जीतते अपने गाँव का नाम रोशन करते और भारत में अपनी अलग पहचान बनाते कुछ इस तरह से हुई थी दारा सिंह की शुरुआत और एक वक्त ऐसा भी था जब अमेरिका के विश्व चैंपियन को उन्होंने हरा दिया था और उसके बाद वो चैंपियन कहलाए थे दारा सिंह ने साल 1959 में पूर्व चैंपियन पूर्व विश्व चैंपियन जॉर्ज गाजियांका पराजित करके कॉमनवेल्थ की विश्व चैंपियनशिप जीती थी

1968 में वो अमेरिका के विश्व चैंपियन पराजित करके freestyle कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए और उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पांच सौ से भी ज्यादा मुकाबलों में उन्होंने कभी हार का मुँह देखा ही नहीं यानि दारा सिंह हारना नहीं जानते थे इसीलिए कहा जाता है कि हमेशा अपराजय रहे दारा सिंह यानी जिसे कोई हरा नहीं सका इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा भी किया और विश्व चैंपियन किंग कांग को परास्त कर दिया दारा सिंह ने उन सभी देशों का एक-एक करके दौरा किया जहाँ फ्री कुश्तियां लड़ी जाती थी

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आखिरकार अमेरिका के विश्व चैंपियन उनतीस मई उन्नीस सौ अड़सठ twenty nine में nineteen sixty eight के दिन पराजित करके वो freestyle कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गए 1983 में उन्होंने अपराजय पहलवान के रूप में कुश्ती से संन्यास ले लिया जिस वक्त उन्होंने संन्यास लिया वो अपराजय कहलाए उन्हें किसी ने नहीं हराया था दारा सिंह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कुश्ती के दिनों से ही उन्हें फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया था

उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि पर्दे पर कमीज शर्ट उतारने वाले वो पहले हीरो थे सिकंदर ए आजम और डाकू मंगल सिंह जैसी फिल्मों से carrier शुरू करने वाले दारा सिंह आखरी बार इम्तियाज अली की फिल्म में करीना कपूर के दादा जी बनकर दिखाई दिए थे साल दो हजार सात का किस्सा है।

गुजरे जमाने की अभिनेत्री मुमताज के साथ उनकी जोड़ी बड़ी हिट मानी जाती थी दारा की फिल्म जग्गा के लिए भारत सरकार से उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी दिया गया बाद में उन्होंने television serials में भी काम किया दारा सिंह ने हिट रामायण जो रामानंद सागर की रामायण थी उसमें हनुमान जी का किरदार निभाया था तो ये है पहलवान दारा सिंह जी की कहानी अगर आपको ये कहानी पसंद आई है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए।

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