इस समय अजय देवगन की फिल्म in fact आर माधवन की फिल्म मैं कहूंगा शैतान की काफी तारीफें हो रही है और कहा ये जा रहा है कि अब तक की release हुई जितनी भी हिंदी horror फिल्में हैं उसमें ये top पर पहुँच गई है एक सौ पांच करोड़ रूपए से ज्यादा का इसने collection कर लिया है। दोस्तों जब हम फिल्म शैतान की बात करते हैं तो हमारे जेहन में फिल्म वश का ख्याल आ जाता है। जो कि असल में गुजराती फिल्म है। जो पिछले साल फेब्रुअरी में रिलीज हुई थी और ये जो फिल्म है शैतान ये इसकी हूबहू कॉपी है।
अब जब हम बॉलीवुड सिनेमा की बात करते हैं, हिंदी सिनेमा की बात करते हैं उसमें अगर हम किसी फिल्म की तारीफ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो एक बहुत अच्छी copy है तो जहन में सवाल ये उठता है कि मान लीजिए किसी कागज पर आप कुछ बहुत अच्छा लिखा हुआ देखें और फिर उसका एक xerox निकलवाएं और नीचे अपना नाम लिख दें तो क्या वो लिखा हुआ जो content है वो आपका हो जाएगा, यही सवाल मैं अक्सर Copy फिल्मों के बारे में पूछता रहा हूँ, कितना आसान होता है किसी और के risk को जब वो Successful हो जाए, फिर आप अपने Version में उसे पेश कर दें। अजय देवगन ने भी यही किया है। असल में इस फिल्म के लिए अगर किसी को वाहवाही मिलनी चाहिए तो वो आर माधवन है क्योंकि आर माधवन का इस फिल्म में जो रोल है वो बहुत ही जबरदस्त है और अंत तक आपके दिल पर असर छोड़कर जाता है।
शैतान बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 11 दिन: 103.21 करोड़
लेकिन साथ ही साथ ये सवाल भी बनता है कि अगर इसी तरह कॉपी और remake के सहारे बॉलीवुड चलता रहा तो फिर वो innovation और creativity कहाँ से आएगी? क्या हिंदी दूसरे भाषा में release हुई फिल्मों का अनुवाद देखने के लिए हैं। क्या कोई लेखक कोई फिल्मकार हिंदी फिल्म के दर्शकों के लिए कोई नया Experiment नहीं करेगा? या फिर हिंदी फिल्म के जो दर्शक हैं उनको लिया जाता है। ये मान लिया जाता है कि हम उनको किसी भी तरीके से बना सकते हैं। अब आप सोचिए कि एक already जो बनी हुई फिल्म है, बहुत से गुजराती दर्शक ऐसे होंगे जो गुजराती और हिंदी फिल्में दोनों देखते हैं, उन्होंने इस फिल्म को देखा होगा और वो समझ पा रहे होंगे कि किस इस फिल्म को एक तरह से कॉपी बनाकर पेश कर दिया, रीमेक बनाकर पेश कर दिया, ऐसे में जो कॉपी बनाने वाला शख्स है क्या वो वाकई वाह-वाही का हकदार है? दूसरा सवाल ये कि अगर इस तरह का सिनेमा बनता रहा जो कि दूसरी भाषा का कॉपी है, दूसरी भाषा का रीमेक है तो फिर वो innovation कहाँ से आएगा?
जो नए creative writers हैं जो तरसते रहते हैं कि उनकी कहानी पर कोई फिल्म बनाए, उन्हें मौका कैसे मिलेगा? क्या आप ये मानना चाहिए कि पैंतालीस लाख रुपए के छोटे से बजट में फिल्म वश। जिसका अब हिंदी रीमेक बनाया गया जो एक सौ पाँच करोड़ का बिजनेस कर चुका है। तो क्या हिंदी फिल्म इंडस्ट्री सिर्फ Remake के सहारे चलेगी? क्या नए लोगों को मौका नहीं मिलेगा? क्या नई सोच को बढ़ावा नहीं मिलेगा? तो फिर क्या हम इसे creativity कह सकते हैं? क्या किसी की नकल करना creativity है?
क्या आप आने वाले समय में सिर्फ और सिर्फ Demakes देखना चाहते हैं? ये एक बड़ा सवाल है। मैं शैतान की तारीफ के बीच इस सवाल को आपसे पूछ रहा हूँ और चाहता हूँ कि इस पर आप खुलकर अपनी दें, साथ ही हिंदी फिल्म बनाने वाले प्रोडूसर को ये बताएं कि हिंदी फिल्म का दर्शक अब कुछ नया चाहता है, कुछ नए प्रयोग चाहता है, नया content चाहता है, नई creativity चाहता है, अब वो थक चूका है, remakes को देख-देख कर क्या कहते हैं।