हाल ही में मैंने Netflix पर release हुई लापता ladies देखी और इस फिल्म को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आमिर खान की पत्नी होने के बावजूद किरण राव ने हमारे ग्रामीण इलाकों में जो महिलाओं की मजबूरियां हैं जो उनकी जिंदगी के challenges हैं, चुनौतियां हैं, जो दर्द हैं जो किसी से कह नहीं पाती, जो रोजाना वो सहती हैं, भुगतती हैं, उनको बहुत करीब से महसूस किया है, अगर ऐसा नहीं होता तो वो ये फिल्म नहीं बना पाती।
मुझे याद आ रहा है खान का वो स्टेटमेंट जिसके लिए उन्हें काफी ट्रोल किया गया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि अब हमें इस देश में डर लगता है। और उसके बाद उन्हें कई सारे ब्रांड endorsement से हाथ धोना पड़ा था। लेकिन किरण राव की ये फिल्म बताती है कि हमारे देश में जो ग्रामीण इलाके हैं, जो छोटे शहर हैं, जो कसबे हैं और कुछ हद तक बड़े शहरों में भी कुछ इलाके ऐसे हैं, जहाँ महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है।
उन्हें अपना जीवन जीने की आजादी नहीं है, उन्हें अपने जीवन के सपने देखने की आजादी नहीं है। उन्हें अपने जीवन को अपने हिसाब से जीने की कोई आजादी नहीं मिलती क्योंकि वो शादी नाम के एक बंधन में बंध जाती है और इसी समस्या पर एक बहुत हँसाने वाले अंदाज में जो चोट की है जो कटाक्ष किया है। वो हमें झकझोर देता है, सोचने पर मजबूर करता है, गुदगुदाता तो है, पर वो हमें हमारे बारे में ही सवाल उठाने पर भी मजबूर कर देता है।
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लापता लेडीज ऐसी फिल्म है जो हमें सच से रूबरू कराती है जो हमारे सामने जुमले कसे जाते हैं भारत के महान होने के हमें ये फिल्म बताती है कि हमारा देश कितना महान है हमारे देश की सोच कितनी महान है क्योंकि जो कुछ भी उस फिल्म में दिखाया गया है हो सकता है आप ये कहें कि मेरे साथ नहीं हुआ लेकिन अगर आप अपने आस-पास नजरें घुमाकर देखेंगे आपके शहर में, गाँव में, कस्बे में, आपके किसी मित्र के साथ किसी रिश्तेदार के घर में कभी ना कभी कहीं ना कहीं कुछ ऐसी बातें जरूर हुई होंगी
जिनके दर्शन आपको इस फिल्म में हो जाएंगे, कहने का मतलब ये नहीं है कि बीवी गुम हो जाए ये सबके साथ होता है लेकिन इसके आसपास जो ताना बाना बुना गया है वो आपको आपके शहर के आपके परिवार के आपकी सोच के और जो patriarchy का system है हमारे समाज में उसके बहुत करीब से दर्शन कराता है दोस्तों बहुत मुश्किल है इस फिल्म को न्यूट्रल होकर देख पाना क्योंकि अगर एक मर्द है तो मर्द की तरह सोचेंगे औरत है तो औरत की तरह सोचेंगे पर मैं आपसे ये कहूँगा कि इस फिल्म को देखते वक्त आप ना सोचिए, ना मर्द होकर सोचिए, आप इस देश के नागरिक एक शहरी, एक जिम्मेदार citizen के तौर पर इस फिल्म को जवाब देखेंगे, तब आपको इस फिल्म में कई सारे सवाल और उनके जवाब मिल जाएंगे। फिल्म में जो छोटी-छोटी बातें भी है ना एक वृद्ध का character है।
जो बीच में आता है और सिर्फ एक dialogue बोलता है, जागते रहो। वो भी हमें जगाने का काम कर रहा है। इस फिल्म के एक-एक dialogue को गौर से सुनने की जरूरत है, मैं कहता हूं, इस फिल्म का हर dialogue इस फिल्म का हर डायलॉग एक संदेश दे रहा है। आप उस संदेश को कितनी गहराई से, कितनी गहनता से समझ पाते हैं।
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ये बताएगा कि आप इस देश को, समाज को कितनी गहनता से समझते हैं, कितनी करीब से महसूस करते हैं। सिर्फ ये कह देने से कि भारत मेरा देश है, नहीं हो जाता। उसको समझना पड़ता है। उस जीवन को अगर आपने नहीं भी जिया है, तो उन कुछ घंटों के दौरान जितनी देर ये फिल्म आपके सामने चलती है, आपको उस निर्मल प्रदेश के सूरजमुखी गाँव में जाना पड़ता है। उस मूर्ति पर रहना पड़ता है।
उन कैरेक्टर्स को देखना पड़ता है, उनसे जुड़ना पड़ता है, उनके अंदर डूबना पड़ता है, उनकी सोच को, उनकी एप्रोच को और उस कैरेक्टर के अंदर जो कुछ भी चलता है। चाहे वो इमोशन हो। या उसकी सोच-विचार हो। उसको अगर आप बहुत करीब से देखेंगे तो आपको बहुत कुछ इस फिल्म में दिखेगा। बहुत कम लोग हैं बॉलीवुड में। जो बंबई में रहते हैं, मुंबई में रहते हैं, बांद्रा, पाली हिल में रहते हैं। पोश इलाकों में रहते हैं और इस सब्जेक्ट को समझ पाते हैं।
सैल्यूट है किरण राव को और शायद इस फिल्म को देखकर समझ में आता है कि आमिर खान को जब भी हुआ होगा, किरन राव से प्यार क्यों हुआ होगा? दोनों एक दूसरे के नजदीक क्यों आए होंगे? क्योंकि आमिर खान के काम में आप लाख कमियां निकाल सकते हो, लाल सिंह चड्ढा के बाद लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि वो अपने काम को बहुत अच्छे से जानते हैं मुझे याद आ रहा है रणबीर कपूर का एक interview हालाँकि इस लापता लेडीज से उसका कोई ताल्लुक नहीं है लेकिन क्योंकि जिक्र निकला आमिर खान का रणबीर कपूर को ये सलाह दी थी आमिर खान ने जब वो स्टार नहीं बने थे कि बेटा अभी तुम्हें कोई जानता नहीं है अभी जाओ और जाकर देखो बनारस और मेरठ की गलियों में क्या होता है? लखनऊ, कानपुर, जबलपुर में क्या होता है?
भोपाल में, जयपुर में, जोधपुर में क्या होता है? उन चाय की टपरियों पे बैठ के आओ लोग वहाँ कैसे बात करते हैं? तब तुम जानोगे असली हिंदुस्तान क्या होता है? क्योंकि एक बार अगर तुम स्टार बन गए तो तुम फिर ये सब कर नहीं पाओगे और रणवीर कपूर था कि मैंने आमिर खान की सलाह को माना नहीं और मुझे अफसोस होता है जब भी मैं कोई character play करने जाता हूँ कि काश मैंने ये कर लिया होता क्योंकि मुंबई में जो लोग रहते हैं खासकर posh इलाकों में Bandra, Poly Hill, Pali Hill में रहता है पूरा बॉलीवुड या जुहू में रहता है, वहां हिंदुस्तान के दर्शन आपको नहीं होते, हिंदुस्तान अगर आपको देखना है तो गांव में जा के देखना है, कस्बों में जा के देखना है कि local train में सफर करना है आपको। और किरण राव ने बहुत खूबसूरती से किया है, सलाम है उनको।
और मैं चाहूंगा कि अगर आपने फिल्म नहीं देखी तो जरूर देखिए। ये फिल्म हमारी व्यवस्था चोट करती है। हमारी सोच पर सवाल उठाती है और हमारे अंदर के इंसान को मैं यहाँ पुरुष या स्त्री का इस्तेमाल नहीं कर रहा हूँ हमारे अंदर के इंसान को झकझोर देती है। ये बहुत जरूरी है हमारे लिए क्योंकि हम इस देश में रहते हैं। जानिए तो सही असली हिंदुस्तान में होता क्या है?