वासु भगनानी की जो फिल्म आ रही है बड़े मिया, छोटे मिया का sequel, उसको लेकर एक controversy सामने आ रही है, हालांकि ये फिल्म मैंने नहीं देखी है, इसलिए मैं पूरी तरह से comment नहीं करूंगा, लेकिन जो जानकारी निकल कर सामने आई है, उसमें ये कहा जा रहा है कि इस फिल्म के एक सीन में एक मस्जिद अल अक्सा है, जो बड़ी पवित्र मस्जिद मानी जाती है
इस्लाम धर्म में, उससे मिलता-जुलता एक structure तैयार किया गया है और उसके आसपास एक विस्फोट का सीन है, इस बात को सोशल मीडिया में काफी चर्चा गर्म है। और ये कहा जा रहा है कि ये फिल्म जो है एक तरह से धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकती है।
देखिए अभी क्योंकि मैंने फिल्म देखी नहीं है इसलिए इस पे comment करना ठीक नहीं होगा लेकिन जिस तरह की बातें सोशल मीडिया में आ रही है इसलिए इस बारे में बात करना बहुत जरूरी हो जाता है कि कुछ समय पहले का एक स्टेटमेंट आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ये फिल्म जो है वो एक हजार करोड़ से भी ज्यादा का बिजनेस करेगी।
आज के माहौल में हम ये देखते हैं जब कोई बात से जुड़ जाती है, तो उसको लेकर लोग बहुत ज्यादा अतिरेक से काम लेते हैं, फिर चाहे अह कश्मीर हो the केरला स्टोरी हो या कोई भी और ऐसी फिल्म क्योंकि हमारे देश के राजनेताओं ने देश का माहौल जिस तरह का बना दिया है ये उनकी पार्टी पॉलिटिक्स के लिए बहुत जरूरी है कि लोग धर्म पर बात करते रहें,
लगातार आपस में भिड़ते रहें, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा इस तरह से देखा गया कि फिल्म इंडस्ट्री ने हमेशा धार्मिक एकता दी है फिर चाहे रियल लाइफ का मामला हो या रील लाइफ का फिल्में हमेशा धार्मिक एकता को बढ़ावा देती रही है in fact फिल्म मेकर्स पर ये आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने कभी धर्मों के बीच भेदभाव नहीं किया ऐसे में अगर एक फिल्म ऐसी आ रही है जिसके ऊपर ये आरोप भी लगता है कि उसमें ऐसी कोशिश की गई है
लेकिन जो बातें सोशल मीडिया पर हो रही है कि इस तरीके का प्रयास किया गया है तो निश्चित किसी भी धर्म के लिए हो अगर कोई भी ऐसी घटना कोई चित्रण या कुछ भी ऐसा structure दिखाया जाता है जिससे किसी भी धर्म विशेष के लोगों के बीच एक प्रश्न उठे कि ऐसा क्यों है तो उससे बचना चाहिए और कम से कम मनोरंजन के लिए तो उसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
हमारे देश में आज जरूरत इस बात की है। कि हम अलग-अलग धर्म के लोगों को आपस में जुड़वाने की बात करें, मिलाने की बात करें। क्योंकि धर्मों को तोड़ने वाली ताकत है तो फिर से सक्रिय हैं। और जब भी देश में चुनाव हैं तो आप जानते हैं कि हमारे देश में चुनाव जात-पात और धर्म के नाम पर ही लड़े जाते हैं।
ये एक ऐसा विषय है कि पिछले पचहत्तर सा लो में जितने हमारे देश में चुनाव हुए हैं, उसमें उम्मीदवार इसी आधार पर खड़े किए गए हैं, चाहे कोई पार्टी रही हो कि फलां इलाके में किस जाति के या धर्म के लोग सबसे ज्यादा हैं और अगर ये एक बार फिर से हो रहा है। तो आप सोचिए कि ऐसे में एक फिल्म आ रही है जो इस चीज को और अगर बढ़ावा देने का काम करेगी तो तरीके का माहौल पैदा होगा?
मैं आप लोगों से खुले शब्दों में ये जानना चाहता हूँ कि सिर्फ बड़े मियाँ छोटे मियां नहीं अगर कोई भी ऐसी फिल्म आती है जिसमें किसी की भी धार्मिक भावनाओं को लेकर इस तरह का कोई चित्रण है तो क्या लगता है आपको? क्या ऐसी फिल्मों के बारे में प्रश्न नहीं उठना चाहिए?
क्या सोचते हैं आप इस पूरे मसले पर अह इस वीडियो के नीचे खुलकर आप अपने विचार रख सकते हैं ताकि हम जान सकें कि हमारे देश की जो अवाम है, हमारे देश की जो आम जनता है वो ऐसे कोशिशों के बारे में क्या सोचती है? और क्या लगता है कि ये सही तरीका होता है मनोरंजन को बेचने का कि आप उसमें धर्म को आड़े लेकर आ जाएं।