एक बार फिर से चुनाव होने जा रहे हैं और बॉलीवुड ने हाल ही में देश को एक और बड़ा धोखा दिया है। मैं बात कर रहा हूँ सनी देओल की जो कि पंजाब के गुरदासपुर से सांसद तो रहे लेकिन अपनी constituency से नदारद रहे, इस हद तक नदारद रहे कि गुमशुदा की तलाश वाले posters लगाने पड़े और उन्होंने संसद में एक भी सवाल अपनी constituency के लोगों के लिए नहीं पूछा। यानी उन्होंने ये पूरी तरह से साबित कर दी बॉलीवुड के लोगों पर भरोसा करना आम जनता की मूर्खता है। लेकिन दोस्तों ये सब अभी यहाँ थमा नहीं है। ये सब बहुत पहले से चल रहा है और आगे भी होगा। क्योंकि समय-समय पर कई सारी राजनैतिक पार्टियां सिर्फ लोगों के vote को attract करने के लिए बहुत सारे नामचीन लोगों को मुफ्त में ticket थमा देती हैं और फिर ये जनता के पैसे पर हमारे आपके टैक्स के पैसे पर पांच साल तक ऐश करते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं।
बात चाहे राजेश खन्ना की हो, की हो, रवि किशन की हो, जया प्रदा की हो, नगमा की हो, ये सब लोग आए और कहीं चले गए, इन सबने अपने लिए एक एक test ग्राउंड देखा कि आओ देखते हैं चेक करते हैं हमारे skills कैसे हैं और जनता के पैसे पर ऐश करके ये चलते बनते हैं। दोस्तों आप सोचिए कि जिस भी constituency से ये खड़े होते हैं, वहाँ कितने ही कार्यकर्ता ऐसे होते होंगे जो ये सपना देखते होंगे, ख्वाब देखते होंगे कि हमें टिकट मिलेगा, हमें जनता की सेवा मौका मिलेगा। लेकिन राजनैतिक पार्टियां उनको मौका नहीं देती। इनको उठाती हैं जिन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं है। ये ठीक वैसा हुआ कि मान लीजिए आपके शहर में कोई हलवाई है जो बहुत अच्छी मिठाई बनाता है और क्योंकि वो बहुत अच्छी मिठाई बनाता है इसलिए उसे चुनाव में खड़ा कर दिया जाए। ठीक उसी तरह अगर कोई फिल्मों में acting अच्छी कर लेता है। इसका ये मतलब तो नहीं होता कि वो देश चला सकता है, वो आम जनता के मुद्दे उठा सकता है, वो आम जनता के लिए संसद में खड़े होकर सवाल पूछ सकता है।
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सबसे बड़ा उदाहरण मैं फिर से देना चाहूँगा सनी देओल। जिन्होंने अपनी गदर फिल्म के जरिए ये बताया कि वो तो पाकिस्तान में जाकर हैंडपंप उखाड़कर और पता नहीं कितना जोर-जोर से चीख-चीलाकर इंसाफ की, न्याय की और सच की बात कर सकते हैं, लेकिन जब असल जिंदगी में मौका आया तो वो नदारद थे मैदान से गायब थे। और अकेले सनी की बात नहीं है। ये पहले भी बॉलीवुड में होता रहा है, वरना आप बताइए कि एक किसी ऐसे बॉलीवुड के बड़े नाम का जिक्र कीजिए जिसने वाकई राजनीति में अपना हमने राज बब्बर को भी देखा। हमने रवि किशन को देखा, हमने, मनोज तिवारी को देखा, हमने बहुत से लोगों को देखा। ये सब के सब आए और न जाने कहाँ खो गए। ये क्यों आए थे, इनका आने का मकसद क्या था? क्या ये लोकतंत्र का मुँह चिढ़ा रहे थे? क्या ये हमें बता रहे थे कि देखो, हम खड़े हो सकते हैं चुनाव में, टिकट मिल सकता है, जीत भी सकते हैं, इसलिए हो गए और अपनी जिम्मेदारी हम बिल्कुल नहीं निभाएंगे और उसके बाद भी कई सारी राजनीतिक पार्टियां नामचीन चेहरों को मौका देती रही।
जनता का मुँह चिढ़ाती रही। लोकतंत्र का मुँह चिढ़ाती रही। और दोस्तों जनता इसे चुपचाप देखती है और जनता से ज्यादा मैं बात करूंगा उस constituency के उन कार्यकर्ताओं की जो दिन-रात उनकी सेवा में लगे रहते हैं, महिमामंडल में लगे रहते हैं हेमा मालिनी जी को देख लीजिए। जिस वक्त विवाह की बात थी उस वक्त इस्लाम याद आ रहा था। और जब बात आई चुनाव लड़ने की, संसद तक की तो कृष्णभक्ति में लीन हो गई। ये जो मौकापरस्ती है ये जो वक्त देखकर रुख बदलना है ये फिल्मों में तो चलता है, कोई आप अभिनय कर रहे हैं, वहां तो चलता है लेकिन अगर आप असल जिंदगी में करने लगे, खासकर तब जबकि आप आम लोगों के बीच मिसाल हैं। जबकि लोग आपको कॉपी करते हैं, फॉलो करते हैं, आपके जैसा बनना और दिखना चाहते हैं, ऐसे में अगर आप इतना खतरनाक कदम उठाते हैं कि लोगों के सामने गलत मिसाल पेश करते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि आपका चेहरा मशहूर सिर्फ इसलिए क्योंकि लोग आपके नाम को जानते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि लोगों ने आपकी फिल्में देखी हैं।
आपका वो अवतार देखा है जो असल में real तो है ही नहीं वो तो reel है और उसकी वजह से ये सारे के सारे हमारी democracy का मुँह चिढ़ाने आते है। चुनाव जीतते है और उसके बाद आप उन्हें ढूंढते रह जाते है मतलब एक सौ चालीस करोड़ का हमारा ये देश जो विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था बन चूका है जो खुद को विश्व गुरु कहता है वहां कोई भी राजनैतिक पार्टी किसी भी फिल्मी हीरो हीरोइन को चुनाव में खड़ा कर देती है वो जीत जाता है और उसके बाद वो सभी जिम्मेदारियों से पूरी तरह से किनारा कर लेता है, ना संसद में दिखाई देता है। आप रेखा की बात करें, आप सचिन तेंदुलकर की बात करें, इनके ऊपर तो इल्जाम लगते रहे। सचिन तेंदुलकर तो अह भारत रत्न भी है रेखा के बारे में बात करें, इनके बारे में तमाम आर्टिकल्स लिखे गए, बहुत सारे लोगों ने सवाल पूछे लेकिन कहीं किसी को शर्म तक नहीं आई कि आप एक इतनी बड़ी हस्ती होने के बाद जब आप पर एक विश्वास जताया जाता है, एक यकीन जताया जाता है, उसके बाद आप गायब हो जाते हैं। आप सोचिए कि कितने बड़े शर्म की बात है ये, उन लोगों के लिए भी और हमारे देश की जनता के लिए भी।
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क्या किसी भी चुनाव के आने से पहले आपके मन में ये प्रश्न उठता है कि क्या इस बार भी कुछ ऐसे चिकने-चुपड़े चॉकलेटी चेहरे खड़े कर दिए जाएंगे, हाल ही में अक्षय कुमार का नाम भी सुनने को मिल रहा था, दिल्ली के चांदनी चौक इलाके से सिर्फ इसलिए क्योंकि अक्षय का बचपन चांदनी चौक में बीता है, इसलिए उन्हें चुनाव में खड़ा कर दिया जाए, वो इंसाफ तो अपनी फिल्मों के साथ भी नहीं कर पाते, राज जैसी फिल्म उन्होंने की जहाँ वो पृथ्वी राज नहीं लग रहे थे उनके बारे में कहा जाता है वो फिल्में इतनी जल्दी निपटाते हैं कि character में आ ही नहीं पाते ऐसे शख्स को आप पाँच साल के लिए चुनाव में खड़ा करके सीट जीताकर संसद भेजना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि वो मशहूर है, आप सोचिए कि मशहूर तो बहुत होते हैं, कोई क्रिकेट खिलाड़ी है, कोई सिंगर है, कोई फिल्म स्टार है, कोई क्रिकेट स्टार है, कोई कुछ है, लेकिन क्या मशहूर होना, लोकप्रिय होना इस बात की गारंटी है कि वो शख्स जनता की की सेवा भी करेगा।
क्योंकि मशहूर होना एक अलग बात है। सचिन तेंदुलकर बहुत अच्छा क्रिकेट खेलते हैं। क्रिकेट के भगवान हैं। लेकिन क्या वो राजनीति कर पाएंगे? क्या वो लोगों के दुःख दर्द को समझ पाएंगे। रेखा बहुत खूबसूरत दिखती है, बहुत नामी अदाकारा है, लेकिन क्या वो लोगों का दुख दर्द समझती है? South में जरूर आपको कुछ ऐसे example मिल जाएंगे जैसे जयललिता, वो लोग successful हुए क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से राजनीति अपना profession बना लिया था। लेकिन जहाँ तक के बड़े नामों का सवाल है फिर चाहे विनोद खन्ना रहे हो, मंत्री पद तक पहुंचने के बाद भी सुनील दत्त रहे हो, लेकिन ऐसा कोई खास काम आपको याद नहीं आएगा कि हाँ, बॉलीवुड का फला-फला नाम जब मंत्री बना था, तो उसने ये किया था, लेकिन इसके बावजूद ये कोशिशें हर बार होती हैं, ये कोशिशें इस बात को बताती हैं, कि ये राजनैतिक दल आपको मूर्ख समझते हैं, देश की जनता को मूर्ख समझते हैं, कि हम एक मशहूर चेहरा सामने खड़ा कर देंगे, उसके जनता जैसे इनकी फिल्मों के टिकट खरीदती है।
ऐसे इनको वोट भी दे देगी। यानी यहाँ देश की सेवा का सवाल नहीं है। देश की जनता का दिल जीतने का भी सवाल नहीं है बल्कि सारा मामला इस बात का है कि कैसे बस एक सीट हासिल कर ली जाए। सोचिए दोस्तों इतनी बड़ी democracy हमारा हजारों-करोड़ों रुपए का टैक्स जो जाता है देश चलाने के लिए और गद्दी पे कोई ऐसा लॉ maker बैठा हो जो ना संसद जाए ना सवा पूछे ना जैसे लोगों की फिक्र, ना चिंता, ना कोई बात। और आप खड़े हो जाते हैं कि बड़ा मशहूर है, ये हमारा सांसद बनेगा, ये हमारा विधायक बनेगा। और इतना ही नहीं कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती। अगली बार अगर हार भी जाए, अगली बार अगर चुनाव में खड़ा भी ना हो, तो वो pension लेता रहेगा, आप सोचिए कि कितनी बड़ी नाइंसाफी है। क्या आपको नहीं लगता कि एक बात जनता की तरफ से इन राजनैतिक दलों को जानी चाहिए कि आप अगर सही मायने में अपने नुमाइंदे खड़े करना चाहते हैं,
तो वो हो जिन्हें जनता की सेवा का अनुभव हो। जो की सेवा करना जानते हो, उनके लिए सवाल पूछना जानते हो, ना कि कैमरे के सामने खड़े होकर बड़े-बड़े dialogue बोलना जानते हो, कैमरे के सामने खड़े होकर बोलना एक अलग बात है और संसद में जो जड़ से जुड़ी हुई समस्याएं हैं उनको रखना एक अलग बात है, दोस्तों ये बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है और इसके बारे में अगर हम और आप नहीं सोचेंगे तो कोई दूसरे देश या दूसरे planets इसके बारे में सोचना नहीं आएगा। बाहर भी लोग हम पर हँसते होंगे कि देखो क्या democracy का तमाशा बनाया किसी को भी खड़ा कर देते हैं। और उसके बाद छाती पीटते हैं कि दिखता ही नहीं तो आता ही नहीं।
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