पहली बात तो ये है कि ये फिल्म आपको अंदर तक झकझोर देती है। एक पत्रकार होने के नाते और एक आम आदमी होने के नाते या हर उस शख्स होने के नाते जिसे दूसरों के दर्द में अपनी तकलीफ दिखती है, आप इस फिल्म को जरूर देखें क्योंकि ये फिल्म आपको बताती है कि आप इंसान कहलाने का हक्क तभी रखते हैं, जब आप सामने वाले के दर्द को अपने शरीर के भीतर महसूस कर सकें। और एक होने के नाते, एक नागरिक होने के नाते अपने उस कर्तव्य को समझ पाएं। अपनी उस जिम्मेदारी का एहसास कर पाएं जिस जिससे आप बंधे हुए हैं। अगर आप इस देश में रहते हैं या आप किसी भी देश में क्यों ना रहते हों। वहां आसपास रहने वाले, किसी के साथ अगर अन्याय हो रहा है, नाइंसाफी हो रही है और आप चुपचाप उसे बस होते हुए देख रहे हैं, तो यकीन मानिए उस शख्स पर नाइंसाफी करने वाले, उस शख्स पर अन्याय करने वाले से कहीं नहीं है आप।
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यही इस फिल्म का संदेश है। बिहार के मुजफ्फरपुर shelter home में जो कुछ हुआ दो हजार अठारह की घटना है उस पर ये आधारित है लेकिन मैं इस बात को मानता हूँ कि वो कोई पहली अकेली ऐसी घटना नहीं थी और हम जितने बड़े देश में रहते हैं। निश्चित तौर पर हमारे आसपास कई और जगहों पर कई तरह के अन्याय और नाइंसाफियां हो रही हैं। कुछ के बारे में हम जानते हैं, आँखें बंद कर लेते हैं। एक दर्शक के नाते, एक पाठक होने के नाते, रीडर होने के नाते हम अक्सर ऐसी खबरों को ढूंढते हैं जो हमें मजा देती हैं, छटखारा देती हैं, हमारे लिए गॉसिप होती हैं। हम अक्सर ऐसी खबरें जो किसी के दर्द पर आधारित हैं।
किसी की नाइंसाफी पर आधारित हैं, हम उनसे नजरें फेर लेते हैं क्योंकि हमें लगता है कि हमारी जिंदगी में दुःख-दर्द काफी है। और हमें तो अखबार इसलिए पढ़ना है ताकि हम छटखारा ले सकें। यूट्यूब या फेसबुक इसलिए देखना है, ताकि हमें उसमें मजा आए। ये जो मजा ढूंढने कोशिश है ये तब तक चला करती है जब तक हमारे किसी अपने या हमारे खुद के साथ ही कुछ गलत ना हो जाए और तब हमें ये ख्याल आता है कि हाँ न्यूज़ तो इसलिए होती है समाचार तो इसलिए होते हैं पत्रकार तो इसलिए होते हैं कि वो किसी के दर्द की बात करें लेकिन जब हम ढूंढते हैं एक दर्शक होने के नाते एक पाठक होने के नाते तो हम भी उस मजे की ही तलाश कर रहे होते हैं। कुछ हद तक हम आज के समाचार चैनलों पर ये ठीकरा फोड़ सकते हैं कि देखो हमको क्या दिखाया जाता है लेकिन क्या ये हमारे लिए, आम दर्शकों के लिए नहीं बनता। कि हम देखना क्या चाहते हैं?
तो ये सवाल ऐसा है कि जिसका जवाब हमें ढूंढने की जरूरत है, भक्षक अगर नहीं देखी है, जरूर देखिए, भक्षक देखकर ना सिर्फ आप उस सच्ची घटना के बारे में जान पाएंगे बल्कि हमारे आसपास जो कुछ हो रहा है न्यूज़ coverage के नाम पर एक दर्शक के तौर पर, एक पत्रकार के तौर पर, एक आम नागरिक के तौर पर, आप बहुत कुछ इस फिल्म में देख पाएंगे, मुझे ऐसा लगता है, कि इस फिल्म का देखा जाना सबके लिए इसलिए भी जरूरी ताकि हम खुद को ये अहसास दिला पाएं कि अगर हम दावा करते हैं कि हम इंसान हैं तो फिर इंसान कहलाने का हक़ हमें तभी मिलता है, जब हम अपने आस-पास हो रहे अन्याय और नाइंसाफियों में उस दर्द को महसूस करें कि अगर वो हमारे साथ होता तो कैसा लगता? भक्षक देखने लायक फिल्म है, मैं इसे अपनी तरफ से पूरे नंबर दे रहा हूँ, और अगर आपने फिल्म देख ली है, तो मुझे बताइए कि ये फिल्म आपको कैसी लगी?
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