Black and white फिल्मों में acting और comedy के लिए मशहूर असिद सेन एक ऐसा चेहरा है। अगर आपने हिंदी फिल्में देखी है तो आप इन्हें ज़रूर जानते होंगे। असिद सेन अपनी एक अलग पहचान रखते थे और बेहद धीमी और slow आवाज से dialogue delivery करना उनकी खासियत थी बीस साल बाद इस title की एक फिल्म आयी थी जिसमें उनकी भूमिका ऐसी थी कि वो बहुत धीरे-धीरे dialogue बोलते थे और इसी वजह से वो काफी popular हो गए।
असिद सेन ने करीब ढाई सौ बंगला और हिंदी में काम किया। आसिफ सेन के फिल्मों में आने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। जब वो उस वक्त के बॉम्बे पहुंचे जो आज मुंबई कहलाता है। उस वक्त उन्हें मशहूर फिल्मकार विमल रॉय के साथ बतौर कैमरामैन काम करना था। दरअसल असिफ सेन को फोटोग्राफी का बहुत शौक था और उनका उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में एक फोटो स्टूडियो भी हुआ करता था। फोटोग्राफी के सिलसिले में वो साल nineteen forty nine और nineteen fifty के आसपास की बात है, कोलकाता गए थे वहां उन्होंने new theater join किया।
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वहां एक ड्रामा कंपनी में acting करते-करते उनकी मुलाकात हो गई विमल रॉय से। असल में इनकी comic timing और बोलने का अंदाज इतना अच्छा था कि विमल रॉय ने इन्हें देखते ही अपनी आने वाली फिल्म सुजाता में प्रोफेसर का रोल दे दिया। इसके बाद असतसेन एक बेहतरीन कॉमेडियन के तौर पर पहचाने जाने लगे। असत सेन की कहानी शुरू होती है thirteenth May nineteen seventeen के दिन से गोरखपुर शहर से।
जो उत्तर प्रदेश का शहर है वहाँ thirteenth May यानी तेरह मई उन्नीस सौ सत्रह को बंगाली परिवार एक रहा करता था वहाँ इनका जन्म हुआ रोजगार के सिलसिले में इनका परिवार बाद में पश्चिम बंगाल के जिला वर्धमान से आकर उत्तर प्रदेश में आकर रहने लगा था गोरखपुर में और असत सिंह के पिता किसी जमाने में रेडियो और ग्रामोफोन की दुकान चलाया करते थे और फिर धीरे-धीरे वो बिजली का सामान भी उस दुकान पर बेचा करते थे अशित सिंह को दुकान पर बैठना पसंद नहीं था लेकिन उन्हें फोटोग्राफी का बहुत शौक था तो कई समारोह में जाकर वो फोटो खींचने काम करते थे। असिद जब दसवीं पास हुए तो उनकी माँ चाहती थी कि उनकी शादी करवा दी जाए लेकिन असिद तो कुछ और ही चाहते थे।
वो उस वक्त के कलकत्ता और आज के कोलकाता के न्यू थिएटर्स में जाकर डायरेक्टर नितिन बोस से फिल्म मेकिंग सीखना चाहते थे। असिद को समझ नहीं आ रहा था कि कलकत्ता जाए कैसे? तभी एक शादी के सिलसिले में उनका वहां जाना हुआ। कलकत्ता जाकर असिद ने अपने परिवार वालों के सामने ये बहाना बनाया कि उन्हें कलकत्ता में रहकर बीकॉम की पढ़ाई करनी है। कलकत्ता अब मौका मिल गया उनको आने का कोलकाता आकर असिद ने थिएटर में फिर हाथ आजमाना शुरू किया और कुछ नाटकों में धीरे-धीरे काम करना शुरू किया धीरे-धीरे उन्हें अपने काम के लिए तारीफें मिलने लगी और तभी जब तारीफें मिल रही थी, काम मिल रहा था, असिद से इनको वापस अपने घर गोरखपुर जाना पड़ा।
दरअसल गोरखपुर के पुलिस कमिश्नर साहब से असिद के पिता की बड़ी अच्छी जान-पहचान थी और उनका गोरखपुर से तबादला हो गया तो शहर में उनका एक बहुत बड़ा विदाई समारोह रखा गया था। अब समारोह में photography की जिम्मेदारी असत सेन को दे दी गई। और इसीलिए उन्हें कलकत्ते से बुलाया गया था कि भाई तुम photography करो यहाँ पर। उस वक्त इनका शहर में काफी नाम था कि भाई असिद सेन बड़ी अच्छी फोटो खींचते हैं। अशित सेन भी अपनी तारीफ से खुश होते थे और उन्होंने उन्नीस सौ बत्तीस में nineteen thirty two में गोरखपुर में सेन फोटो studio इस नाम से अपना स्टूडियो खोल लिया। उनका फोटो स्टूडियो काफी अच्छा चलने लगा था लेकिन तभी world war two शुरू हो गया उस दौर में इंडिया में फोटोग्राफी का सारा सामान विदेश से आता था। अब war की वजह से ऐसा हो नहीं पाया कि सामान आ जाए।
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तो सेन का जो फोटो स्टूडियो था में आ गया आप सोचिए उस जमाने में हम अपने देश से अह फोटो भी नहीं खींच सकते थे, उसका सामान भी विदेश से आता था, खैर फोटो स्टूडियो बंद होने की कगार पर पहुंचा तो असिद सेन को रोजी रोटी की चिंता होने लगी, इस सिलसिले में वो बम्बई पहुंचे जहाँ उन्हें एक फिल्म कंपनी में स्टिल फोटोग्राफर का काम मिल गया और नए काम में असिद को बड़ा मजा आने लगा लेकिन अभी मजा आना शुरू हुआ ही था कि घर से एक तार आया, उस जमाने में तार आने का मतलब कोई बुरी खबर होती थी,
उसमें लिखा था माँ बीमार है घर आ जाओ अब असिद सेन थे वो तुरंत गोरखपुर आ गए खबर मिली थी माँ की बीमारी की लेकिन उनसे पहले असिद की दादी माँ चल बसी दादी के निधन के कुछ समय बाद अशिद की माँ का भी निधन हो गया अब तीन महीने के अंदर घर में हो गई दो मौत और इससे अशित सिंह बुरी तरह टूट गए अब वो ना गोरखपुर में रह पा रहे थे ना ही बंबई जाकर दोबारा काम करने की हिम्मत जुटा पा रहे थे मतलब उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो करें क्या एक दिन अशिफ ने अपना दिल पक्का किया और सब कुछ पीछे छोड़कर फिर से कोलकाता पहुँच गए अब कलकत्ता जाकर अशित सिंह के साथ क्या हुआ ये उन्होंने एक इंटरव्यू दिया था अच्छे से explain किया वो मैं आपको बताता हूँ तो उस interview में कहते है कि वहाँ जाकर मेरी मुलाकात अपने दोस्त कृष्णकांत से हुई जो फिल्म बनफूल में तानन्द बाला के साथ काम कर रहा था
कृष्णकांत ने मेरी मुलाकात एक्ट्रेस सुमित्रा देवी और उनके पति देव मुखर्जी से करा दी दोनों से ये जान पहचान आगे मेरे बहुत काम आई उनकी बदौलत ही मेरी मुलाकात फिल्म मेकर विमल रॉय से हुई जो की तब तक अपनी पहली बंगाली फिल्म उदय बना चुके थे और अब हिंदी में एक फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें एक असिस्टेंट की तलाश थी जो कि हिंदी में माहिर हो तो उन्होंने मुझे रख लिया।
मुझसे पहले वो असिस्टेंट रख चुके थे। और तो मैं उनका एक तरह से तीसरा असिस्टेंट था लेकिन धीरे-धीरे अपने काम की बदौलत मैं उनका पहला असिस्टेंट बन गया इसके साथ में कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे काम भी करने लगा। मेरी सबसे पहली फिल्म हमराही थी जिसमें बहुत ही छोटा सा रोल मैंने प्ले किया nineteen forty five से nineteen forty nine तक असत से थिएटर से ही जुड़े रहे। पचास के दशक की शुरुआत में ही विमल रॉय ने फैसला किया कि वो बंबई जाकर रहेंगे और असत सेन को भी उन्होंने अपनी टीम का हिस्सा बनाया और कहा तुम भी आ जाओ।
उन्नीस सौ छप्पन तक असत सेन विमल दा के असिस्टेंट बने रहे। उन्नीस सौ तिरपन में एक फिल्म आई दो बीघा जमीन। इसमें बतौर प्रोडक्शन executive इन्होंने काम किया और nineteen fifty three में रिलीज हुई परिणिता में इसके अलावा nineteen fifty four में आई विराज बहु में और nineteen fifty five आई फिल्म देवदास में उन्हें बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर बकायदा क्रेडिट मिला। उन्नीस सौ छप्पन में nineteen fifty सिक्स में विमलदा ने असत सिंह को अपनी ही फिल्म कंपनी विमल रॉय प्रोडक्शन के बैनर में फिल्म परिवार के डायरेक्शन का मौका दे दिया।
इसके तुरंत बाद ही नाइनटीन फिफ्टी सेवन में असत सिंह ने फिल्म अपराधी कॉन डायरेक्ट की और इन दो फिल्मों को डायरेक्ट करने के बाद असिद फिर से अभिनय की ओर मुड़ना चाहते थे। देखिए गोरखपुर शहर से निकला एक फोटोग्राफर जिसे स्टेज का शौक था वो कहाँ से होते बॉम्बे की फिल्म इंडस्ट्री पहुंचता है। ये इसमें इस कहानी में बड़ी रोचक बात है। अच्छा इस दौरान जब वो अभिनय की तरफ मुड़ना चाह रहे थे nineteen fifty seven के आसपास की बात है तो उन्होंने फिल्म छोटा भाई ये साइन कर ली और इस फिल्म में असत सेन को एक बुद्धू से नौकर के किरदार में कॉमेडी करनी थी उन्हें कुछ सोच नहीं रहा था कि मैं क्या करूँ?
कैसे बनूं मैं बुद्धू नौकर तभी उन्हें ख्याल आया कि बचपन में उनके घर में एक नौकर काम किया करता था जो बड़े ही slow अंदाज में बोला करता था बाबू का करत हो मतलब बहुत ही धीरे धीरे धीरे उन्होंने कहा ठीक है मैं अपने उस बचपन वाले नौकर को कॉपी करता हूँ और उनकी ये ट्रिक काम कर गई बेहद कम स्पीड में डायलॉग बोलने का ये जो स्टाइल था वो अब ये होने लगा कि डायरेक्टर ने कहा कि भाई आपका हम डायलॉग बढ़ा रहे हैं आप जरा ऐसे बोलो क्योंकि वो बड़ा एक कॉमिक अंदाज क्रिएट कर रहा था खुद विमल रॉय ने अशित सेन की डायलॉग डिलीवरी से प्रभावित होकर उन्हें फिल्म सुजाता में रोल दे दिया असत सिंह को एक ही तरह स्टाइल में अब टाइप होने का डर भी सताने लगा हर तरफ वो वो ही धीरे वाले डायलॉग बोलते थे फिर अह nineteen sixty one में जब फिल्म आती है
ये बीस साल बाद वहाँ एकदम ये चरम पर पहुँच गए ये वाला जो इनका स्टाइल था धीरे-धीरे डायलॉग बोलने का वो पॉपुलर हो गया इस फिल्म में उन्होंने गोपीचंद जासूस का किरदार निभाया था और गोपीचंद जासूस वाला ये किरदार इतना पॉपुलर हुआ इसकी बार-बार नकल की गई और nineteen eighty two में अभिनेता राजेंद्र कुमार के भाई फिल्म मेकर नरेश कुमार ने एक फिल्म बना दी गोपीचंद जासूस जो कि एक फिल्म के कैरेक्टर पर आधारित थी। इसके बाद ninety sixty थ्री में चांद और सूरज, nineteen sixty five में भूत बंगला, ninety sixty seven में नौनिहाल, nineteen sixty eight में ब्रह्मचारी, ninety sixty nine में यकीन और आराधना, प्यार का मौसम, पूरब, पश्चिम, दुश्मन, मझली दीदी, बुड्ढा मिल गया ये वो सारी फिल्में हैं। जहाँ इन्होंने बहुत सारा काम किया। आशिष सिंह ने आनंद में काम किया।
दूर करा ही अमरप्रेम, बॉबे टू गोवा, बालिका वधु ऐसी बहुत सारी फिल्मों में उन्होंने खूब सारे किरदार निभाए और इससे इनकी शादी बाद में मुकुल से हुई जो कि कोलकाता की रहने वाली थी दोनों के तीन बच्चे हुए। दो बेटे अभिजीत और सुजीत सिंह और एक बेटी तो अभिजीत सेन जो हैं वो **** गुहा जैसे एक नामी निर्देशक हुए उनके assistant रहे और फिर बाद में वो बांग्ला फिल्मों में काम कर रहे हैं आज भी सुजीत सेन अ cameraman हैं 1993 में असिद की पत्नी अह मुकुल सेन काफी बीमार पड़ गई थी जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई और अपनी पत्नी की मौत से असिद इतना टूट गए कि कुछ महीने बाद इसी साल यानी अह सितंबर अठारह सितंबर उन्नीस सौ तिरानवे को वो भी इस दुनिया से चल बसे।
तो ये है असित सेन की कहानी जो शुरू होती है गोरखपुर शहर से जहाँ उनका एक छोटा सा फोटो स्टूडियो था गए थे, उन्हें फोटो खींचने के लिए वापस बुलाया गया, फिर मुंबई पहुंचे और किस तरीके से उन्होंने विमल रॉय को assist किया और वहां से अह एक असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर उनका career रहा, एक अच्छे फोटोग्राफर थे, फिर एक नौकर के किरदार में कैसे जान फूंकी जाए, कैसे comic अंदाज लेकर आया जाए, उसके लिए उन्होंने एक असल जिंदगी के नौकर की नकल की और अपना एक अलग style स्थापित किया।
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