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द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेलर रिव्यू | The Diary of West Bengal Trailer Review

द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेलर रिव्यू | The Diary of West Bengal Trailer Reviewद डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेलर रिव्यू | The Diary of West Bengal Trailer Review

 मैं हूँ सुहास्ती भट्टाचार्य और मैं एक बंगाली हिन्दू हूँ ये Hindu लोग अपनी धार्मिक किताबें कम पढ़ते है ना इसका हमें फायदा हो रहा है Hindu होना इतना बड़ा गुनाह है जो फैसला करेगा मुसलमान करेगा हर-हर महादेव दोस्तों ये बात किसी से छिपी नहीं है कि हमारे देश का पूर्वी राज्य वेस्ट बंगाल बुरी तरह जल रहा है। तरह-तरह की आग लगी है, धर्म के नाम पर जात-पात के नाम पर महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के नाम पर लेकिन कोई खुलकर इसके बारे में बात नहीं करता, लेकिन अब इस पर एक फिल्म आई है, नाम है द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल जो कि थर्टी एट अगस्त को रिलीज हो रही है,

मैंने हाल ही में इसका ट्रेलर देखा और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये एक ऐसा है जिस पर लंबे समय से फिल्म बनाए जाने की जरूरत थी लेकिन हिम्मत कोई कर नहीं रहा था लेकिन ये हिम्मत दिखाई है वसीम रिजवी ने जो इस फिल्म के प्रोड्यूसर है और अब वो धर्म परिवर्तन करके जितेंद्र नारायण सिंह भी बन चुके हैं इस फिल्म का निर्देशन किया है सनोज मिश्रा ने और ये कहानी एक सच्ची कहानी है जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी जो आपको इस बात का एहसास दिला देगी कि हमारे देश में कितना चल रहा है. फिर भी इसके बारे में कहीं बात नहीं होती. कोई हमें झकझोरने नहीं आता, कोई हमें जगाने नहीं आता.

मैंने कुछ गलत नहीं किया फिर भी तोड़ दिया – नागार्जुन 

ये फिल्म उसी सच की बात करती है. दोस्तों अगर आप देश से प्यार करते हैं. अपने भारत से प्यार करते हैं. तो मैं आपसे रिक्वेस्ट करूंगा कि ऐसे सब्जेक्ट पर बनी फिल्मों को प्रोत्साहन जरूर दीजिए. अपना प्यार जरूर दीजिए. क्योंकि ऐसे सब्जेक्ट्स सही जगह तक सही कानों और सही आंखों तक पहुंचने बहुत जरूरी होते हैं. इसका ट्रेलर जब देखा तो उसके ट्रेलर से ये बात समझ में आती है कि कितना कुछ हमारे आसपास चल रहा होता है लेकिन हम शायद सो रहे होते हैं या फिर उधर ध्यान नहीं देते

लेकिन आप सोच कर देखिए जिनके ऊपर ये जुल्मों सितम बीतते हैं जिनके ऊपर होकर गुजरती है उनकी जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए तबाह हो जाती है और ऐसा नहीं है कि इसका असर आप पर नहीं पड़ता इसका असर सब पर पड़ता है इस ट्रेलर की सबने तारीफ की है मैं पढ़ रहा था आचार्य धीरेंद्र शास्त्री ने की है और आचार्य रामभद्र ने इसकी तारीफ की है और बहुत सारे पत्रकार और बहुत सारे बुद्धिजीवी इसकी तारीफ कर रहे हैं और हर किसी ने ये कहा है कि आखिर क्यों नहीं पहले इस तरह की फिल्म बनाई गई, आखिर क्यों नहीं पहले इस तरह की हिम्मत की गई?

इस ट्रेलर में जो दिखाया गया है, वो आपको सोचने को मजबूर कर देगा कि क्या हमारे सीने में दिल नहीं है? क्या हम पत्थर के हो चुके हैं? क्या हम वाकई इंसान हैं? जो इतना कुछ हमारे आसपास होता रहता है और हम उस पर ना कभी रिएक्ट करते हैं, ना सोचते हैं, ना चिंता जताते हैं। क्योंकि ये आग धीरे-धीरे बढ़ रही है, इसको अगर रोका नहीं गया तो ये आग बहुत बुरी तरह फैल सकती है और इसको एड्रेस करने की, इस पर ध्यान देने की आज सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी जरूरत है।

क्या हमारे देश में लोग पैसे के बल पर जेल के अंदर भी पिकनिक मनाते हैं?