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बिहार के काल्पनिक शहर सीतामढ़ी के बैकग्राउंड में चलती रहती है: भैय्या जी

बिहार के काल्पनिक शहर सीतामढ़ी के बैकग्राउंड में चलती रहती है: भैय्या जीबिहार के काल्पनिक शहर सीतामढ़ी के बैकग्राउंड में चलती रहती है: भैय्या जी

भैया जी ये मनोज वाजपेयी के करियर की सौवीं फिल्म है। और इस फिल्म में उन्होंने काफी एक्शन किया है लेकिन क्या ये फिल्म वाकई आपको थिएटर में जाकर देखनी चाहिए। दो घंटे पंद्रह मिनट इसकी ड्यूरेशन है। और इस फिल्म की कहानी बिहार के काल्पनिक शहर सीतामंडी के बैकग्राउंड में चलती रहती है।

मनोज वाजपेयी ने इस फिल्म में रामचरण त्रिपाठी का किरदार निभाया है। जिसे प्यार से लोग भैया जी कहते हैं। तो भैया जी जो ये एक जमाने में बिहार की पॉलिटिक्स में खूब दबदबे वाले इंसान थे। उनके फावड़े ने हजारों कुकर्मियों को इस संसार से मुक्त कर दिया था। लेकिन भैया जी अब सब कुछ छोड़कर शादी करके बिल्कुल शरीफों की तरह जिंदगी जीना चाहते हैं।

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इस बीच उनके छोटे भाई की दिल्ली में हत्या हो जाती है। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए भैया जी बिहार से दिल्ली आते हैं और शुरू होता है एक नया खेल। इसमें कोई शक नहीं कि मनोज वाजपेयी ने अपनी दमदार acting और action से खूब किया है और इससे पहले उन्हें ऐसे एक्शन अवतार में कभी देखा भी नहीं गया अपने किरदार के साथ उन्होंने पूरी तरह से इंसाफ करने की कोशिश की है।

बिहार के काल्पनिक शहर सीतामढ़ी के बैकग्राउंड में चलती रहती है: भैय्या जी
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मनोज बाजपई की लेडी लव बनी जॉया हुसैन कहीं ना कहीं एक्शन सीन में उन पर भारी भी पड़ती दिखती है तो वहीं नेगेटिव भूमिका में सुविंदर, विक्की, जतिन गोस्वामी ये अपना कोई असर नहीं छोड़ पाते हैं। विपिन शर्मा अपने किरदार से दर्शकों को गुदगुदाने की थोड़ी कोशिश करते हैं लेकिन वो थोड़ा सा बनावटी लगता है इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है फिल्म का डायरेक्शन इस फिल्म से पहले मनोज वाजपेयी को लेकर एक फिल्म आई थी सिर्फ एक बंदा काफी है उसी फिल्म का डायरेक्शन कर चुके अपूर्व सिंह कारकी ने इसका डायरेक्शन किया है

फिल्म की कहानी काफी कमजोर है बदले की भावना पर आधारित इस तरह की कई कहानियां दर्शक पहले कई बार देख चुके हैं फिल्म की पटकथा भी स्क्रिप्ट भी शुरू से लेकर अंत तक वह ढीली है फिल्म शुरू होने के एक मिनट के बाद से ही इस बात का अंदाजा हो जाता है कि कहानी आगे क्या मोड़ लेगी यानी है मतलब प्रेडिक्ट कर सकते हैं आप कि क्या होने वाला है?

फिल्म के गिने-चुने डायलॉग्स को अगर छोड़ दें तो सारे डायलॉग्स भी घिसे पिटे से लगते हैं फिल्म की कहानी में बिहारी टच है और दिल्ली हरियाणा का टच दिखाया गया है लेकिन फिल्म के एक्शन सीन्स देखकर ऐसा लगता है कि साउथ की कोई फिल्म आप देख रहे हैं वो चल रही है आपके सामने सिनेमैटोग्राफी भी कोई खास नहीं है फिल्म की कहानी बिहार के बैकग्राउंड की है इसलिए फिल्म के गीत भोजपुरी सिंगर से गवाए गए हैं ये एक अच्छी कोशिश है लेकिन मनोज तिवारी के गाए गीत बाग़ के करेजा और कौन जनम के बदला के अलावा कोई भी गीत ऐसा नहीं है जो आपको असर छोड़ पाए आप पर और फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी कुछ खास नहीं है

तो अगर आप मनोज वाजपेयी के फैन हैं और उन्हें पहली बार एक बहुत जबरदस्त एक्शन अवतार में देखना चाहते हैं तो आप ये फिल्म देख सकते हैं और अगर थोड़ा इंतजार करना चाहे तो इंतजार कर सकते हैं थोड़े समय बाद ये फिल्म ओटीटी पर भी आ सकती है तो आपको तय करना है कि आप फिल्म कहाँ देखने जाएं अगर नहीं देखेंगे तो बहुत ज्यादा मिस नहीं करने वाले हैं लेकिन अगर हार्डकोर फैन हैं तो आप जाकर देख सकते हैं, अपने पैसे के आप मालिक हैं। तो अगर आपने फिल्म देख ली है तो मुझे भी बताइए कि कैसी लगी आपको ये फिल्म? मुझे इंतजार रहेगा आपके कमेंट्स पढ़ने का।

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