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राजनीति में क्यों फ्लॉप रहते हैं सुपरस्टार?

राजनीति में क्यों फ्लॉप रहते हैं सुपरस्टार?राजनीति में क्यों फ्लॉप रहते हैं सुपरस्टार?

अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, गोविंदा, उर्मिला मांतोटकर, नगमा, जया प्रताप और रजनीकांत बॉलीवुड की ये ऐसे चेहरे हैं जो फिल्मी दुनिया में तो हमेशा चमकते रहे लेकिन जब भी इन्होंने राजनीति में आने की कोशिश की इन्हें हार का मुँह देखना पड़ा बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने भी करीब चालीस साल पहले राजनीति में हाथ आजमाया मगर सियासत उन्हें रास नहीं आई nineteen eighty four के लोकसभा चुनाव में अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद से जीत हासिल की थी दिग्गज नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम। हेमवति नंदन बहुगुणा को हराया था। अमिताभ बच्चन अपने बचपन के मित्र राजीव गांधी के अनुरोध पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने खड़े हो गए थे।

बाद में बोफोर्स विवाद में नाम उछलने के बाद अमिताभ बच्चन का राजनीति से मोहभंग हो गया और nineteen eighty four में शुरू हुई अमिताभ बच्चन की राजनीति की पारी nineteen eighty seven में यानी सिर्फ तीन साल बाद ही जाकर खत्म हो गई। nineteen eighty seven ही वो साल था जब बच्चन ने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद वो चुनावी कार्यक्रमों से भी दूर होते चले गए और फिर एक बार फिर से अपनी फिल्मों की तरफ focus किया बॉलीवुड में number one hero कहलाने वाले गोविंदा भी two thousand four में सियासत में उतरे और दो हजार आठ में उन्हें राजनीति को अलविदा कहना पड़ा।

दो हजार चार में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता राम नायक को मुंबई north लोकसभा seat से हराया था। रामनाइक मुंबई north seat से पांच बार चुनाव जीत चुके थे। गोविंदा पर भी अपने लोकसभा क्षेत्र ना जाने और संसद से गायब रहने के आरोप लगे। राजनीति छोड़ने के सवाल पर गोविंदा ने एक interview में बताया था कि वो politics के लिए fit नहीं है। उनका कहना था कि राजनीति के कारण ही उनका फ़िल्मी career चौपट हो गया। हालांकि अब गोविंदा ने एक बार फिर से शुरुआत की है और राजनीति के गलियारों में वो फिर से दिख रहे हैं लेकिन आज वक्त दूसरा है।

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आज उनका फ़िल्मी career पहले से ही चौपट है। ऐसे में राजनीति में उन्हें कितनी सफलता मिलेगी ये देखने वाली बात होगी। सुनील दत्त की बात ये उन अभिनेताओं में शुमार रहे जिन्होंने राजनीति में भी अपना कद ऊंचा किया लेकिन समय-समय पर अपना पाला बदलते रहे। वो कांग्रेस के टिकट पर पहले मुंबई की उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से पाँच बार चुनाव जीते nineteen eighty four में उन्होंने राम जेठ मलानी को हराया था उनकी खासियत ये रही कि अपनी राजनीतिक जीवन में वो संसद के बहस में भाग लेते रहे चाहे पंजाब में उग्रवाद के दौर में उन्होंने nineteen eighty seven में महाशांति पदयात्रा निकाली हो या फिर समाज सेवा के और कई काम रहे हो।

सुनील दत्त समय-समय पर राजनीति में active रहे लेकिन बेटे संजय दत्त के जेल जाने के बाद उनका राजनीतिक career पूरी तरह से हाशिए पर आ गया। बाद में उनकी बेटी प्रिया दत्त उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी बनी। handsome अभिनेता विनोद खन्ना राजनीति में जब आए तो full time राजनेता बने nineteen ninety seven में बीजेपी join करने वाले विनोद खन्ना nineteen ninety eight में पहली बार पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र से जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेता सुखबंस को हराया था। इसके बाद वो लगातार दो हजार चार तक Gurdaspur से जीतते रहे।

Atal Bihari Vajpayee की सरकार के दौरान केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्यमंत्री और फिर विदेश राज्यमंत्री भी रहे। Gurdaspur का जिक्र हो तो Sunny Deol का नाम भी याद आ जाता है क्योंकि Sunny Deol के ऊपर आरोप ये है कि उन्होंने यहाँ से लोकसभा की seat तो जीत ली लेकिन लोगों का दिल नहीं जीत पाए और अंत में उन्हें भी राजनीति से तौबा करनी पड़ी क्योंकि उन पर आरोप ये लगते रहे कि उन्हें Gurdaspur के बारे में नहीं पता है यहाँ तक कि गुरदासपुर में गुमशुदा की तलाश वाले posters भी चिपकाए गए जिसमें पूछा गया कि कहाँ है सनी देओल?

इसी शहर से विनोद खन्ना भी दो हजार नौ में एक चुनाव हार गए थे मगर अपने काम की वजह से वो दो हजार चौदह में फिर से गुरदासपुर के सांसद चुने गए थे तो गुरदासपुर की जनता ने विनोद खन्ना और सनी देओल के रूप में दो अलग-अलग तरह के अभिनेताओं को देखा है जिन्होंने वक्त पड़ने पर काम भी किया और कुछ ऐसे भी रहे सनी जैसे जो मौके से नदारद रहे। शत्रुन सिन्हा की बात करें तो उनकी राजनीति का career थोड़ा लंबा चला।

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करीब तीन दशक तक वो राजनीति में सक्रिय रहे। अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इनकी शुरुआत हुई थी nineteen ninety two के और इसी उपचुनाव से राजनीति में entry मारने वाले दूसरे बड़े सितारे थे बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना। जिन्होंने उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी को हराया था। लेकिन राजेश खन्ना का career भी कुछ खास नहीं चला।

जिस तरह से वो बॉलीवुड में पहले सुपरस्टार उसी तरह से राजनीति में वो फ्लॉप स्टार बनकर रह गए। राजेश खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा का जिक्र एक साथ करना इसलिए जरूरी है क्योंकि nineteen ninety two में राजेश खन्ना से चुनाव हार गए थे शत्रुघ्न सिन्हा और उसके बाद राज्यसभा के जरिए ये संसद में दाखिल हुए।

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बाद में पटना और पटना साहिब से लगातार लोकसभा सांसद चुने जाते रहे और अठाईस सालों तक बीजेपी में रहने के बाद दो हजार उन्नीस में पहले तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और फिर बाद में टीएमसी के साथ जाकर खड़े हो गए और फिलहाल आसनसोल से ये लोकसभा सदस्य है और आप जानते है कि बाबुल सुप्रियों के इस्तीफे के बाद आसनसोल सीट खाली हो गई थी हेमा मालिनी भी अपने दोस्त विनोद खन्ना के सपोर्ट में राजनीति में उतरी थी उनका पहला term राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के तौर पर था इस दौरान हेमा मालिनी सांसद के तौर पर कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई मगर बीजेपी की राजनीति में ये एक्टिव हो गई दो हजार दस में ये बीजेपी की महासचिव बनी दो हजार चौदह के चुनाव में मथुरा से लोकसभा के लिए चुनी गई उन्नीस में भी इन्होंने दूसरी बार जीत हासिल की।

लेकिन इन पर भी वही आरोप लगा। जो आरोप रेखा पर लगा था जो आरोप सचिन तेंदुलकर पर लगा था कि ये संसद से नदारद रहते हैं। हेमा मालिनी सिर्फ पचास फ़ीसदी दिनों के लिए ही संसद में दिखाई दी। वैसे मैं आपको बता दूँ कि हेमा मालिनी का ग्राफ काफी अच्छा है। रेखा और सचिन तेंदुलकर के नाम तो रिकॉर्ड हैं कि ये संसद के आस-पास भी दिखाई नहीं दिए। हालाँकि हेमा मालिनी अक्सर दिख जाती है. किरण खेर की बात करें तो ये चंडीगढ़ से दो बार सांसद चुनी जा चुकी है. दो हज़ार चौदह के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस नेता पवन बंसल और दो हज़ार उन्नीस में गुलपनाक को हराया था.

चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव के दौरान भी काफी एक्टिव रही थी मगर संसद में उनकी उपस्थिति सिर्फ forty seven percent है. तो ये फ़िल्मी सितारों पर एक बहुत ही बड़ा आरोप अक्सर लगता रहा है कि ये अगर सीट जीत भी लें तो संसद से गायब रहते हैं और इस बात को लेकर इनके जो constituency के लोग हैं वो काफी शिकायतें करते हैं और ये आरोप सभी पर लगता रहा है फ़िल्मी दुनिया के वीरू यानी धर्मेंद्र भी नेतागिरी में अपने बेटे सनी के पिता रहे जी हाँ जिस तरह से सनी गायब रहे गुरदासपुर से तो ये भी बीकानेर से गायब रहे दो हजार चार में बीकानेर से चुने जाने के बाद भी इन्होंने संसद से दूरी बनाई रखी चुनाव के दौरान उन्होंने फिल्मी style में corruption खत्म करने का वादा तो किया मगर सांसद बनने के बाद बीकानेर में उनकी मौजूदगी कम ही नजर आई एक interview में ने बताया था कि उन्हें राजनीति की philosophy समझ नहीं आई।

राजनीति में क्यों फ्लॉप रहते हैं सुपरस्टार?

जब उनसे पूछा गया कि क्या आप दोबारा चुनाव लड़ेंगे? तो उन्होंने जवाब दिया कि कौन उल्लू का **** दोबारा चुनाव लड़ेगा? दो हजार नौ के बाद से धर्मेंद्र अपनी पत्नी हेमा मालिनी के लिए प्रचार करते नजर आते हैं, मगर खुद चुनाव नहीं लड़ते हैं और धर्मेंद्र की बात हो तो जिक्र सनी देओल का करना जरूरी हो जाता है। दो हजार उन्नीस में गुरदासपुर के सांसद चुने गए सनी असल में अपनी क्षेत्र की जनता से इतने दूर हैं कि उनके जनता इन्हें ढूंढती रहती है। फिल्मों में व्यस्त रहने वाले सनी देओल की उस वक्त भी खूब आलोचना हुई जब वो गदर टू के प्रमोशन के लिए अमृतसर गए।

वाघा बॉर्डर गए मगर अपनी constituency यानी गुरदासपुर नहीं पहुंचे। सनी देओल का संसद में अटेंडेंस भी चर्चा का विषय रहा, संसद में उनकी उपस्थिति महज अठारह परसेंट रही, जो कि राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। अपने संसदीय कार्यकाल में सनी देओल ने किसी बहस में कोई हिस्सा नहीं लिया। चर्चा है कि पार्टी के लोग भी इस वजह से देओल से काफी नाराज रहे। रेखा की बात करें तो वो साल दो हजार बारह से राज्यसभा सांसद रही लेकिन संसद में कभी दिखाई नहीं दी।

कुछ ऐसे ही इल्जाम सचिन तेंदुलकर पर भी लगते रहे। उर्मिला मांतुनकर की बात करें तो बाकी stars की तरह उर्मिला भी politics में अपनी किस्मत आजमा चुकी है दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव में उर्मिला को कांग्रेस पार्टी से टिकट मिला था और उनकी सीधी टक्कर भाजपा के गोपाल शेट्टी से हुई। इस चुनाव में उर्मिला को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि उर्मिला एक बार फिर सुर्ख़ियों में हैं क्योंकि अब वो शिवसेना के साथ हैं। संजय दत्त की बात करें तो वो दो हजार नौ में लखनऊ से समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव लड़ना चाह रहे थे लेकिन फिर बात नहीं बनी हालांकि इन सबके बीच राज बब्बर काफी एक्टिव रहे हैं यूपी के एक नामी राजनेता हैं और ये दो बार राज्यसभा सांसद और तीन बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं।

जया प्रदा की बात करें तो अब ये समाजवादी पार्टी का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुकी है, इन्होंने साउथ की एंटी रामा राव की पार्टी तेलुगू देशम से अपने career की शुरुआत की थी। साल उन्नीस सौ छियानवे में ये पहली बार राज्यसभा सांसद के रूप में चुनी गई। कुछ सालों बाद ही इन्होंने दक्षिण भारत छोड़कर उत्तर भारत की राजनीति में समाजवादी पार्टी के जरिए कदम रखा और इस पार्टी के जरिए ये दो बार सांसद भी चुनी गई।

राजनीति में क्यों फ्लॉप रहते हैं सुपरस्टार?

लेकिन राजनीति की बिसात पर इन्हें एक failure ही माना जाएगा। उधर Jaya Bachchan जो कई blockbuster फिल्में दे चुकी थी एक वक्त में ये भी अब भारतीय राजनीति का जाना माना चेहरा है। साल दो हजार चार से लगातार राज्यसभा सांसद बनी हुई हैं और समाजवादी पार्टी की एक प्रखर नेता भी हैं। इन सब सितारों के अलावा प्रकाश राज एक independent candidate के तौर पर बेंगलुरु central से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं साथ ही परेश रावल मिथुन चक्रवर्ती और शबाना आजमी भी राजनीति में अच्छी पकड़ रखते हैं लेकिन इनमें से किसी का भी राजनीतिक career कभी सफल नहीं हो पाया असल में जनता के बीच ये एक तमाशे के तौर पर देखे जाते हैं जहाँ राजनीतिक पार्टियां इनका इस्तेमाल करती हैं

भीड़ जुटाने के लिए या बड़े कद्दावर नेता को हराने के लिए जैसा की किसी वक्त में Amitabh Bachchan ने किया था जब उन्होंने UP के पूर्व CM को Allahabad seat में हराया था लेकिन उसके बाद उनका खुद का career नहीं चला तो कुल मिलाकर कहने का मतलब ये है कि चाहे Govinda हो Amitabh Bachchan हो Rajinikanth हो या कोई भी बड़ा नाम ये समय समय पर किसी बड़ी party के लिए बड़ा मोहरा तो साबित हुए है लेकिन अपने खुद के राजनैतिक career के लिए कभी कुछ कर नहीं पाए आप लोग राजनीति में fail होने वाले इन Bollywood सितारों के बारे में अपनी क्या राय रखते हैं।

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