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सावरकर की फिल्म पर बवाल: ये है पांच डायलॉग

सावरकर की फिल्म पर बवाल: ये है पांच डायलॉग

रणदीप हुड्डा की फिल्म वीर सावरकर रिलीज से साथ ही चर्चा में आ गई है, विवादों में आ गई है और पांच ऐसे डायलॉग हैं जिनका जिक्र इस समय सोशल मीडिया पर हो रहा है, सबसे पहले तो इसके ट्रेलर को देखते ही आपत्ति जताई है, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते ने उन्होंने ये कहा है कि नेताजी एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे, इसलिए उन्हें बैड लाइट में ना दिखाया जाए, अब मैं बात बताने वाला हूँ, आपको उन पांच Dialogues की, जिनको लेकर काफी चर्चा हो रही है, जो चर्चा में Dialogues हैं, उसमें नंबर वन पर है, मैं ऐसे लोगों को ढूंढ रहा हूँ, जो जिंदा अंग्रेजों का फाड़ कर खा जाए। ये dialogue है जिस पर काफी चर्चा है।

दूसरा है आपने कभी सोचा है कांग्रेस के किसी Member को काले पानी की सजा क्यों नहीं हुई और देश में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में इस Dialogue को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है। तीसरा dialogue है आजादी की लड़ाई नब्बे साल चली। पर ये लड़ाई सिर्फ कुछ ही लोगों ने लड़ी बाकी सब तो सत्ता के भूखे थे तो इस तरफ इशारा किया जा रहा है। ये भी एक बड़ी बात है और जैसा आप जानते है कि बॉलीवुड में फिल्में जब रिलीज होती है, लोगों के बीच चर्चा का विषय बनती है, खासकर अगर देश में कोई बड़ा चुनावी मौसम आया हुआ हो तो इसका असर भी साफ दिखता है, हाल ही में जिस तरह से अभी केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई और जिस तरीके से Electoral bond का मामला निकल कर आया है, तो कुल मिलाकर ये सारी चीजें जो है, किसी खास तरफ इशारा कर रही है!

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एक और डायलॉग जो चौथे नंबर का डायलॉग है, और काफी चर्चा में है, वो है, महात्मा गांधी बुरे नहीं थे, लेकिन अगर वो अपनी अहिंसावादी सोच पर अड़े नहीं रहते, तो भारत पैंतीस साल पहले आजाद हो जाता। तो सीधा गांधी जी पर एक प्रहार है और इसको लेकर भी सोशल मीडिया पर बहस काफी तेज हो रही है। पांचवा डायलॉग है मूल्यवान तो सोने की लंका भी थी लेकिन बात अगर किसी की स्वतंत्रता की हो तो रावण राज हो या ब्रिटिश राज दहन तो हो के रहेगा। इन पांच डायलॉग्स पर काफी चर्चा हो रही है। एक में सीधे महात्मा गांधी को निशाना बनाया गया है, दूसरे में कांग्रेस को निशाना बनाया गया है। तीसरा इसके ट्रेलर पर आपत्ति जता दी है, नेताजी बोस के परपोते ने और उन्होंने एक साफ तौर पर लिखा है अह देखिए इसमें एक सीन है जिसमें वीर सावरकर सुभाष चंद्र बोस से कह रहे हैं कि जर्मनी और जापान के आधुनिक हथियारों के साथ अंग्रेजों पर हमला कीजिए।

और चंद्र कुमार बोस जो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते हैं वो सोशल मीडिया पर लिखते हैं रणदीप हुड्डा सावरकर पर फिल्म बनाने के लिए आपकी सराहना करता हूँ लेकिन कृपया नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम सावरकर के साथ जोड़ने से बचें, नेताजी एक धर्मनिरपेक्ष नेता और देशभक्त यानी उन्होंने बहुत कुछ इस Sentence में कह दिया मिलाकर जो पांच dialogue चर्चा में है इसको लेकर सोशल मीडिया पर काफी बातें हो रही है।

मैं आपको ये भी बता दूँ कि अह ये जो डायलॉग है कांग्रेस वाला या महात्मा गांधी वाला उसको लोग अभी के चुनावी मौसम से जोड़कर भी देख रहे हैं और जैसा कि आप जानते हैं कि फिल्मों में बोले गए डायलॉग अक्सर सोशल मीडिया पर trend करने लगते हैं अगर ये सीधा तौर पर कोई कटाक्ष हो या किसी खास राजनीतिक पार्टी को अह या तो support करने वाले हों या उसके विरोध में हो तो इसको लेकर काफी चर्चाएं तेज हो जाती है। अब मैं आपको बताऊँ कि हाल फिलहाल के दिनों में Propaganda movies का काफी चलन रहा है।

हम शायद कश्मीर फाइल्स की बात कर ले the कैनेडा स्टोरी की बात कर ले इन दोनों फिल्मों ने एक खास तरह का सच हमारे सबके सामने रखा और बहुत से लोगों ने इसकी सराहना की और शायद इसकी जरूरत भी थी लेकिन कई बार ऐसे Subjects का राजनैतिक इस्तेमाल भी होने लगता है जिसको देखकर चिंता ये होती है कि क्या इन फिल्मों का मकसद सिर्फ सच को सामने रखना था या किसी खास एजेंडा करना था जहाँ तक सच को सामने रखने की बात है मैं सराहना करता हूँ the कश्मीर files की The केरला स्टोरी की कि एक बहुत बड़ा सच सामने रखा गया जिसको शायद बरसों से किसी ने कहने का साहस नहीं किया था

लेकिन साथ ही चिंता उस वक्त होने लगती है जब इस तरह की फिल्मों के आने के बाद एक खास तरह की सोच, एक खास तरह के लोगों की अह जो मानसिकता है उसको आगे रखा जाता है और फिर सवाल खड़े होते हैं कि क्या कुछ एजेंडा परोसा जा रहा है, क्या ये Propaganda movies कहलाती हैं? देखिए अह अभी हाल ही में एक मार्च दो हजार चौबीस को अह फिल्म Release हुई accident या Conspiracy गोधरा उसको भी इसी श्रेणी में रखा गया कि ये एजेंडा है या कुछ खास तरह की बात कहने की कोशिश है और फिर फिल्म गोधरा Incident आई जो तीन मार्च दो हजार चौबीस को release हुई और इसमें  दो हजार दो में गुजरात में जो हुआ था उसका जिक्र है 

अभी जो फिल्म आने वाली है जेएनयू है जहांगीर national university जेएनयू आप समझते हैं कि क्या समझा जाता है हमारे देश में ये पांच अप्रैल को फिल्म release हो रही है राजनीति पर आधारित जिससे जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से प्रेरित है लेकिन नाम थोड़ा-सा बदल दिया गया है। इसके अलावा the battle story of अह सोमनाथ इसकी release date अभी तय नहीं है लेकिन ये भी मोहम्मद गजनवी के अह सोमनाथ मंदिर पर जो हमले हुए उसकी कहानी को दिखाई थी, कई बार ऐसा होता है कि एक फिल्म के जरिए हम कुछ कहने की कोशिश करते हैं, कई बार उसके अर्थ अलग-अलग लोग निकालते हैं, कई बार ये होता है कि उसका Promote कैसा किया जा रहा है और सबसे बड़ी बात ये होती है कि वो फिल्म किस वक्त में release हो रही है, उस वक्त देश में क्या चल रहा है। तो इस वक्त देश चुनाव आने वाले हैं और ऐसे में सावरकर जैसी फिल्म का आना और उसमें ऐसे पाँच विवादित dialogues का होना आपको क्या लगता है? क्या कुछ कहने की कोशिश है? और या फिर ये एक सहज रूप से कही गई बात है जिसको लोगों ने अर्थ निकालने शुरू कर दिए हैं।

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