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तेरी बातो में ऐसा उलझा जिया : मूवी रिव्यू

तेरी बातो में ऐसा उलझा जिया : मूवी रिव्यूतेरी बातो में ऐसा उलझा जिया : मूवी रिव्यू

निर्माताः दिनेश वीजन, ज्योती देशपांडे, लक्ष्मण उतेकर
लेखक व निर्देशकः अमित जोशी और आराधना शाह
कलाकारः शाहिद कपूर, कृति सेनन धर्मेंद्र डिंपल कपाड़िया, राकेश बेदी, अनुभा फतेहपुरिया, राजेश शर्मा, राशुल टंडन, सुशा कपूर, ब्रजभूषण शुक्ला, आशीश वर्मा व अन्य

आए दिन नए नए वैज्ञानिक अनुसंधान हो रहे हैं। आए आए दिन इंसान की जिंदगी पर प्रभाव डालने वाली तकनीक आ रही है। रोबोट आ चुका है। और अब एआई व डीप फेक ने लोगो की नींद उड़ा दी है। ऐसे ही वक्त में लेखक व निर्देशकद्वय अमित जोशी और आराधना शाह, इंसान और रोबोट की प्रेम कहानी को फिल्म “तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया” लेकर आए हैं। मानव व रोबोट का प्रेम बंधन कुछ लोगों को आश्चर्यचकित कर सकता है, लेकिन यह एक ऐसी अवधारणा है जिसे हॉलीवुड सिनेमा में अच्छी तरह से चित्रित किया जा चुका है। यूँ तो भारत में 2010 में प्रदर्शित तमिल साइंस एक्शन थ्रिलर फिल्म ‘एंथिरन’ में चिट्टी नामक रोबोट के मन में सना (ऐश्वर्य) के लिए भावनाओं को दिखाया जा चुका है। मगर ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’
बहुत निराश करती है।

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कहानीः तेरी बातो में ऐसा उलझा जिया

फिल्म की कहानी के केंद्र में आर्यन (शाहिद कपूर) और उसका लंबा चौड़ा परिवार है. इसमें उसके दादा (धर्मेंद्र), माता
शर्मिला (अनुमा फतेहपुरिया), पिता (राकेश बेदी), बुआ (युशा कपूर), फूफा (ब्रजभूषण शुक्ला), चाचा (राजेश कुमार) मौसी उर्मिला (डिंपल कपाडिया) और ढेर सारे रिश्तेदार व उसका दोस्त मोंटी (आशीश वर्मा) हैं। आर्यन और उसका दोस्त दोनों रोबोट साइंटिस्ट है और यह दोनों उर्मिला की ही रोबोटिक्स कंपनी में काम करते हैं। उर्मिला की कंपनी का हेड आफिस अमरीका में है और रोबोट पर शोध वगैरह अमरीका में ही उर्मिला की कंपनी में होता है।

इधर मुंबई में आर्यन का परिवार परेशान है। क्योंकि आर्यन को शादी करने के लिए कोई लड़की पसंद नही आ रही है। वह एक बार तो सगाई छोड़कर भाग चुका है। एक दिन उर्मिला अपने नए प्रोजेक्ट को समझने के लिए आर्यन को अमरीका बुलाती है। जहां पर वह कई तरह के रोबोट से आर्यन की मुलाकात कराती है। जब आर्यन अमरीका में अपनी मौसी के घर पहुँचता है, तो वहां आर्यन की मुलाकात उर्मिला की मैनेजर सिफरा (कृति सेनन) से होती है। सिफरा यानी कि सुपर इंटेलिजेंट फीमेल रोबोट ऑटोमेशन है। मगर इस सच से अनजान आर्यन, सिफरा की आवाज और काम करने की तेजी से प्रभावित हो जाता है। आर्यन को सिफरा से प्यार हो जाता है। रात में दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन जाते हैं।

मतलब भारत की एक सौ चालिस करोड़ की आबादी में आर्यन को रोबोट से ही प्यार होता है। दूसरे दिन सुबह उर्मिला बताती है कि सिफरा, मानव नहीं बल्कि रोबोट (सुपर इंटेलिजेंट फीमेल रोबोट ऑटोमेशन) है। आर्यन चौक जाता है। पर अब आर्यन, सिफरा से ही विवाह करना चाहता है। उर्मिला आर्यन को समझाती है कि वह गलत कर रहा है। पर आर्यन नाराज होकर मुंबई आ जाता है। उर्मिला, रोबोट सिफरा को मुंबई आफिस भेजती है, जिससे उस पर इंसानों के साथ नए प्रयोग किए जा सके। पर आर्यन, सिफरा को लेकर अपने घर पहुँच जाता है कि वह सिफरा से विवाह करेगा। आर्यन के घर वाले सिफरा से प्रभावित होते हैं। उसके बाद क्या होता है, इसके लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी।

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रिव्यूः

नीरस पटकथा, उथला निर्देशन और रोबोट के साथ अपशब्दों के संवाद फिल्म को स्तरहीन बनाते हैं। माना कि समय के साथ इंसानी सोच बदल रही है। अब इंसान के लिए प्यार का मतलब साथी चाहिए, वासना नहीं। तो वहीं विज्ञान प्रगति कर रहा है। रोबोट व एआई लोगों की नौकरियां छीनकर उन्हे बेरोजगार बनाने पर आमादा है। ऐसे दौर में निर्माता दिनेश वीजन और निर्देशकद्वय अमित जोशी व आराधना शाह ने इंसान व रोबोट की अविश्वसनीय व नीरस प्रेम कहानी को अपनी इस फिल्म में लेकर आ गए। लंबे समय बाद फिल्म में परिवार की वापसी हुई है। मगर अफसोस की बात यह लोग कहानी व किरदारों के साथ जुड़ नहीं पाते। कहानी से लोग इसलिए नही जुड़ पाते, क्योंकि सच जानने के बाद एक रोबोट साइंटिस्ट / कंप्यूटर प्रोग्रामर का रोबोट से प्यार करने की बात हजम नहीं होती।

तेरी बातो में ऐसा उलझा जिया : मूवी रिव्यू

आर्यन का लुक, लंबा चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी और लगातार सिगरेट पीना आदि ‘आर्यन’ की बजाय कबीर सिंह की याद दिलाता है. मतलब लेखकद्वय ने आर्यन का किरदार ही पूरी तरह से नकली गढ़ा है। हमने अभी तक रोबोट देखे नही है, मगर हमें लगता है कि फिल्मकार ने सिनेमाई स्वतंत्रता के नाम पर रोबोट को अपनी मर्जी से इंसानो की तरह हाथ पैर चलाते, नृत्य करते, कपड़े पहनते व उतारते हुए दिखा दिया है, जो कि दर्शकों को अविश्वसनीय सा लगता है। इतना ही नही फिल्म में एक पूरा परिवार दिखाया गया है। ऐसे में आर्यन का अपने छोटे भतीजे के साथ जो संवाद है, वह अखरते हैं।

जी हाँ फिल्म में जब आर्यन और सिफरा आपस में चुंबन में लीन होते हैं, तो यह उनका छोटा भतीजा देख लेता है। इस पर आर्यन उससे कहते हैं कि “ये तो हम सिर्फ मुँह मीठा कर रहे थे, यानी कि चाचा अपने भतीजे से झूठ बोलता है। पर यह भतीजा इक्कीसवीं सदी का है। वह लड़का पलटवार करता है, ‘मुझे मूर्ख मत बनाओ। मैंने अपने माता-पिता को भी कई बार ऐसा ही करते देखा है। क्या एक पारिवारिक फिल्म में इस तरह के दृश्य होने चाहिए। यदि यह एडल्ट फिल्म होती तो…एक बार माफ किया जा सकता था। जिस बाल कलाकार ने इस दृश्य को देखा व निभाया है, उसके मन मस्तिष्क पर पड़ने वाले असर के बारे में सोचना तो फिल्मकारों ने छोड़ दिया है और शायद पैसे के लालच में अब बाल कलाकार के माता पिता को भी कोई फर्क नही पड़ता। पर यहां तो सेंसर बोर्ड भी चुप… कहने का अर्थ यह कि यह फिल्म लेखक, निर्देशक व निर्माता का दीमागी दिवालियापन ही है… फिल्म में ऐसा कुछ नही है, जिसके लिए दर्शक सिनेमाघर जाना चाहे

अभिनयः

आर्यन के किरदार में शाहिद कपूर शुरूआती दृश्यों में अपने कबीर सिंह के अवातर में ही नजर आते हैं। उसके बाद बढ़ी हुई दाढ़ी के माध्यम से वह अपने सपाट चेहरे की कमजोरी को कुछ हद तक छिपा ले जाते हैं। पर उनका अभिनय निराश करता है। लेकिन उनकी डांस परफार्मेस की सराहना करनी पड़ेगी। कृति सेनन दस साल बाद भी जहां की तहां है। उनके अभिनय का विस्तार नही हुआ। उनके अभिनय में रोबोट वाली बात कही नजर नही आती। धर्मेंद्र और डिंपल कापड़िया प्रभावित करती है। गुशा कपूर, राजेश
कुमार या कबीर बेदी जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों के हिस्से करने के लिए कुछ रहा ही नहीं।

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