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मैरी क्रिसमस मूवी रिव्यू हिंदी में, कैटरीना कैफ, विजय सेतुपति, श्रीराम राघवन | Merry Christmas Movie Review in Hindi

मैरी क्रिसमस मूवी रिव्यू हिंदी में, कैटरीना कैफ, विजय सेतुपति, श्रीराम राघवन | Merry Christmas Movie Review in Hindi

Merry Christmas Movie Review in Hindi: डायरेक्टर श्रीराम राघवन की अगर आप फिल्मोग्राफी चेक करोगे तो लगेगा की ये काफी क्रेज़ी फ़िल्में बना रहे है उस तरीके से जैसे वो बनाना चाहते है एकदम अपने किस्म का सिनेमा पूरा समय लेकर दर्शकों का पेशेंस टेस्ट करते हुए उनकी पिछली अंधाधुन नई फ़िल्म का नाम है मेरी क्रिसमस मगर रिलीज हुई है पोंगल पर क्योंकि मार्केट का कुछ नहीं कर सकते खैर मेरी क्रिसमस की कहानी एक रात में घटती है क्रिसमस पर यानी 24 दिसंबर की रात साल वो था जब मुंबई को बम्बई बुलाया जाता था ये बताना जरूरी था क्योंकि फ़िल्म बम्बई में ये सेट है.

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मारिया नाम की एक महिला अल्बर्ट नाम के एक पुरुष से मिलती है अब आप कहोगे कि बात तो हिंदू राष्ट्र की हुई थी मगर इस पिक्चर का नाम मेरी क्रिसमस है तो इस अल्बर्ट नाम के आगे ही आइंस्टीन नहीं लगता है इसलिए वो आइक्यू से ज्यादा आइ एल यू  पर यकीन रखते हैं नतीजतन लड़की के चक्कर में फंस जाते हैं बाबू भैया अल्बर्ट मारिया के घर जाता है बढ़िया बॉन्डिंग होती है और जब उनसे कुछ अच्छा हो रहा होता है ना तो उन्हें यकीन नहीं होता उन्हें लगता है कुछ तो गड़बड़ है शास्त्रों में उसे इनट्यूशन या सिक्स पेन्स कहा गया है.

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कई मामलों में वो सही साबित होता है ये वही बदकिस्मत मौका था उस रात कुछ ऐसा होता है जिससे अल्बर्ट और मारिया दोनों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है ऐसा क्या होता है ये तो मूवी देखने के बाद पता चलेगा मैरी क्रिसमस नाम की इस फ़िल्म में कैटरीना कैफ और विजय सेतुपति नाम के दो ऐक्टर्स ने काम किया है कैटरीना बनी है मारिया और विजय ने अल्बर्ट का रोल किया है जब आप इस मूवी को सिनेमाघरों में देख रहे होते हैं तो आपको लगता है कि काश कैटरीना को अच्छी हिंदी बोलनी आती.

Merry Christmas Movie Review in Hindi
Merry Christmas Movie Review in Hindi

क्योकि कैटरीना ने ज़ीरो से पहले अपने ग्रेड में जितना काम किया है उस सबसे अच्छा परफॉरमेंस आपको इस फ़िल्म में देखने को मिलता हैं बस उनके डायलॉग समझ पाते को चार चाँद लग जाते हैं तकरीबन यही चीज़ विजय सेतुपति के साथ भी होती है अगर आपने ऐनिमल देखी है तो आपको पता होगा कि रश्मिका मंदना ने गुस्से में रणबीर कपूर को क्या कहा था क्योंकि अपने को तो आज तक इस मामले में क्लियैरिटी मिली ही नहीं है क्यों ऐक्सेंट विजय सेतुपति क्या बोल रहे है ये कई मौकों पर फिल्म में हमे सुनाई और समझ दोनों ही नहीं आता.

मगर उस आदमी को एक्टिंग आती है कि आपको इस बात को सुनने की जरूरत नहीं पड़ती उनकी देहभाषा और चेहरे के एक्सप्रेशन उनके लिए वो काम कर देते हैं इसलिए मेरी क्रिसमस को उस फ्रंट पर कोई दिक्कत नहीं आती सारा मसला वहाँ आकर खड़ा होता है कि आपने मेरे 2 घंटे इसलिए खर्च करवाए ताकि मैं आखिरी आधे घंटे के लिए खुद को तैयार कर सकूँ क्योंकि पूरी फ़िल्म आखिरी के आधे घंटे में ही घटती हैं और ऐसी घटती हैं कि आपको पिछले 2 घंटे का कोई मलाल याद ही नहीं रहता श्रीराम की पिछली फ़िल्म थी अंधाधुंध उसकी टैगलाइन थी.

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‘डोंट मिस द बिगिनिंग’ यहाँ उसका ठीक उल्टा है ‘डोंट मिस द एंडिंग’ क्योंकि पूरी पिक्चर में जो गुबार जमा हुआ है वो वहाँ जाकर फटता है और क्या फटता है आपकी सारी शिकायतें बोरियत सबका बदला पूरा हो जाता है इसे हम किसी भी जोनर में बांध सकते हैं अगर आप बांधना चाहिए तब, वरना ये सिनेमा है इससे पूरा एन्जॉय किया जाना चाहिए खूब चाव लेकर फ़िल्म की रफ्तार से शिकायत हो सकती है मगर ये पिक्चर लाइव की तरह है आपको पता नहीं है कि अगली मोमेंट क्या देखने को मिलने वाला है आप तयारी करके कुछ और बैठे है.

मगर सिलेबस कुछ और है डायलॉग ऐसे जैसे आप किसी के रोड शो में बैठे हुए हैं मैंने पर्सनली ट्राई किया कि फ़िल्म देखते वक्त कुछ नोट्स बनाये जाये जिससे फ़िल्म देखने के कुछ घंटों बाद भी वो चीजें याद रहे पाए मगर फिर मुझे लगा कि अगर फ़िल्म मेकर ने इतनी मेहनत नहीं की आपको उसका सिनेमा याद रहे तो हम उतनी मेहनत क्यों करे हम तो इंटरटेनमेन्ट के लिए फ़िल्म देखने आए हैं इंटरटेनमेन्ट करने के बाद भी उस फ़िल्म की कुछ बातें अगर आपके साथ रह जाए तब उसे यादगार एक्सपिरियंस या यादगार सिनेमा कहेंगे.

मेरी क्रिसमस तो मुझे वो अनुभव दिया मसलन फ़िल्म का एक सीन है इसमें अल्बर्ट को उसकी प्रेमिका रोज़ी कहती हैं कि उन दोनों का साथ आना मुमकिन नहीं है तो इस पर अल्बर्ट कहता है कि तुमने ये बात पहले क्यों नहीं सोंची जवाब में रोज़ी कहती है कि तुम तो अभी भी ये नहीं सोच रहे हैं आप इस तरह के सीन्स के दौरान एंटरटेन भी महसूस करते हैं और सोचने को मजबूर होते हैं ऐसा अमूमन हिंदी सिनेमा में बहुत कम देखने को मिलता है इतनी बारीक लिखावट आप इसे वन लाइनर मानकर आगे बढ़ सकते हैं मगर वो ब्लैक कॉमेडी है जो आपको हंसाने के साथ असहज महसूस करवाती है.

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मैंने बहुत समय से एक चीज़ महसूस नहीं की थी जिसे अवेयर सिनेमा कहते हैं श्री राम राघवन अपनी फिल्मों में उस तरह का म्यूजिक इस्तेमाल करते हैं इए सुना हो या उसे बहुत रिलेट करते हो वो उसकी मदद से नोस्टेल्जिया का भाव पैदा करना चाहते हैं एक किस्म की रिलेटिविटी लाना चाहते हैं मगर मैरी क्रिसमस में म्यूजिक नरेटिव का हिस्सा हैं गाने के जिस हिस्से में सबसे तेज़ आवाज़ आती है वहाँ फ़िल्म का सबसे बड़ा राज़ दफन हैं वो अपनी कहानी के लिए मुंबई या पुणे की सर जमीन चुनते हैं तो उसे वैसे ही दिखाते हैं जैसा उन्होंने खुद देखा है.

उन्हें मुंबई का लोकेशन स्टैब्लिश करने के लिए गेटवे ऑफ इंडिया के सामने कबूतरों के उड़ने वाला शॉट इस्तेमाल नहीं करना पड़ता अगर आप भावी फिल्म मेकर हैं तो उनकी फ़िल्में आपके कोर्स का हिस्सा होना चाहिए बाकी अगर आप इस फ़िल्म को देख चुके हैं तो आपको फ़िल्म कैसी लगी है हमे कॉमेंट करके जरूर बतायें बाकी और भी ऐसी ही अपडेट्स पाने के लिए हमारे टेलीग्राम चैनल और व्हाट्सएप ग्रुप को ज्वॉइन करें.